ऑफिस की सीढ़ी चढ़ते समय बगल की टूटी सीट पर बैठे एक वृद्ध व्यक्ति पर नजर गई।चेहरे के भाव बता रहे थे कि सज्जन काफी हताश और दुखी थे। मैने कोई खास गौर नहीं किया क्योंकि आज इस ऑफिस में मेरा पहला दिन था। अगले दिन फिर सुबह आते समय वही नजारा।
ऑफिस की सीढ़ी चढ़ते समय बगल की टूटी सीट पर बैठे एक वृद्ध व्यक्ति पर नजर गई।चेहरे के भाव बता रहे थे कि सज्जन काफी हताश और दुखी थे। मैने कोई खास गौर नहीं किया क्योंकि आज इस ऑफिस में मेरा पहला दिन था। अगले दिन फिर सुबह आते समय वही नजारा।ऑफिस की सीढ़ी चढ़ते समय बगल की टूटी सीट पर बैठे एक वृद्ध व्यक्ति पर नजर गई।चेहरे के भाव बता रहे थे कि सज्जन काफी हताश और दुखी थे। मैने कोई खास गौर नहीं किया क्योंकि आज इस ऑफिस में मेरा पहला दिन था। अगले दिन फिर सुबह आते समय वही नजारा।
क्रम से चार पांच दिन मैंने उस सज्जन को वहां बैठे देखा,रहा नहीं गया तो सिक्युरिटी वाले से उनके बारे में पूछा तो पता लगा कि ये सज्जन किसी जमाने में इस कार्यालय के उच्च अधिकारी हुआ करते थे। यूपीएससी से सीधे चयनित होकर आए थे, आईएएस नहीं थे,कोई अन्य पद था।
बेचारा सिक्युरिटी वाला उनका पद नहीं बता सका।
आगे बताया कि बड़े तेज तर्रार थे।किसी की सुनते नहीं थे, अहंकार बहुत था तिसपर चमचों में घिर गये थे।तू तड़ाक से ही बात करते चाहे किसी से भी करें।बड़ा रौब झाड़ते थे। कार्मिकों की छोटी मोटी गलती पर उनका वेतन काट देना,ज्ञापन देना आम बात थी।समय से कोई भी फाइल क्लियर न करना और यदि वह किसी का कोई बिल हो तब तो और भी देरी करना इनका शौक था। लगभग सभी त्रस्त थे।
आज इनके बच्चे बड़े पदों पर हैं,कहीं दूर रहते हैं।पत्नी भी स्वर्ग सिधार चुकी है। पेंशन के कागजात में कुछ कमी रह गई थी जिसके कारण चार वर्ष बाद भी ठीक ठाक पेंशन नहीं मिल रहा है।उसी में सुधार करवाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं।
सेवानिवृत्त के बाद के कुछ दिन तो रौब झाड़कर सुधार का प्रयास किया था पर उस रौब के आतंक में फिर से थोड़ी सी भूल हो गई। जबतक जान पाते, इनके साथ के अधिकारी गण कहीं और स्थानांतरित हो चुके थे। चमचे तो चमचे ही होते हैं,पद से उतरे नहीं कि दूसरे कड़छी में जा पड़ते हैं। उनकी सीट पर उनके जैसे भाव वाला ही एक अधिकारी बैठा है जिसे इन्होंने ही प्रशिक्षित किया था।