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और भूत भाग गया ….

27 सितम्बर 2021

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तब बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा था ।  रमेश बड़ा ही होनहार था ।  उसकी मेघा केवल स्कूली शिक्षा तक ही सीमित नहीं रही ।  जीवन के हर क्षेत्र में अग्रणी रहता था ।  गर्मियों की छुट्टियां चल रही थीं ।  इस बीच मोहल्ले में एक योगी साधू पधारे ।  सभी लोग उनके दर्शन के लिए जा रहे थे ।  रमेश भी उनके दर्शन की इच्छा लेकर पहुंचा ।  कृशकाय शरीर, चेहरे पर एक अनोखा तेज, वाणी में ओज भरी हुई ।  पहली ही नजर में रमेश उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ ।  बातचीत का क्रम चल पड़ा ।  साधू बाबा भी रमेश से काफी प्रभावित दिख रहे थे ।  जीवन-दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, शरीर, योग-ध्यान और न जाने किन-किन विषयों पर चर्चा चली ।  रमेश और साधू दोनों एक दूसरे  से काफी प्रभावित थे ।  अब तो रोज ही शाम को मुलाकात होने लगी ।  गंगा नदी के किनारे ही एक कुटी में टिके थे साधू बाबा । 

धीरे-धीरे रमेश भी योग-ध्यान, आसान आदि साधू बाबा से सीख गया ।  योग-ध्यान, स्वाध्याय अब रमेश के जीवन का जैसे एक अंग बन गया हो ।  रोज सुबह एवं शाम ध्यान-साधना एवं बाकी समय ग्रंथो का अध्ययन ।  बीच-बीच में समय निकालकर सत्संग भी होने लगा ।  साधू बाबा तो कब के जा चुके थे पर उनकी बातों के प्रभाव ने रमेश में एक अनुभूत परिवर्तन ला दिया ।  रमेश अपनी मित्र मंडली से साथ मिलकर जनकल्याण के कार्य में लिप्त होने लगा ।  एक छात्र सत्संग केंद्र की शुरुआत कर दी गई ।  हर शनिवार एवं रविवार को स्कूली बच्चों के लिए अलग से ध्यान-साधना एवं ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग चलने लगा ।  बच्चों में भी काफी परिवर्तन आने लगा ।  जो छात्र स्कूल के नाम से भागते थे वही अब अपनी कक्षा में अवव्वल आने लगे ।  चूँकि रमेश ने अपनी प्रयोगशाला पिछड़ी बस्ती में सजाया था अतः वहां के लोगों में भी इस सुगंध ने परिवर्तन लाना शुरू किया ।  आसपास के लोग भी सत्संग चर्चा में शामिल होने लगे ।  कई नशेबाज एवं धुरंधर पियक्कड़ों ने नशा छोड़ दिया और अपने परिवार एवं जीवन को सुखद बनाने में लग गए ।  धीरे-धीरे तंग गलियों से होकर यह चर्चा रमेश एवं उनके दोस्तों के परिजनों तक भी पहुंची ।  कुछ ने तो इस कार्य की बड़ी सराहना की पर कुछ तो ऐसे बिगड़े कि लात-घूसों से स्वागत करने लगे ।  इतना सितम झेलने के बाद भी लड़कों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ ।  सेवाकार्य बदस्तूर जारी रहा ।  सबसे अधिक इस सेवाकार्य का किसी को कष्ट हुआ तो वो थे रमेश के पूज्य पिताश्री ।  एक विद्यालय के अंग्रेजी के शिक्षक थे साथ ही प्रकांड विद्वान।  जब यह बात सुनी, उन्हें तो जैसे सदमा लगा गया ।  आनन-फानन में घर में बैठक बुलाई गई ।  

घरवालों को भी एक आशंका सताने लगी कि कहीं इस सेवाकार्य के दौरान रमेश साधू बनकर घर न छोड़ दे ।  किसी सदस्य ने कहा जरूर किसी प्रेत का साया है ।  और हो भी क्यों न ? वो जो साधू आया था, उसने ही कोई भूत छोड़ दिया है रमेश पर, तभी तो वो ऐसा हो गया है ।  सदा दूसरों की भलाई, अध्यात्म, ज्ञान की बातें करता रहता है', -मंझली बहु ने कहा । 

बाबूजी को भी चिंता सताने लगी ।  हो न हो किसी प्रेत का ही साया है वर्ना दिन-रात मस्ती में रहने वाला बाबू आज अचानक सधुआ कैसे सकता है ।  

बड़ी चिंता की बात थी ।  पर अब इस भूत को भागने का उपाय कैसे किया जाए ? 

अचानक छोटी चाची को याद आया कि गावं में चइला बाबा हैं ।  उनके घर पर रोज ही भूत उतरवाने वालों का डेरा लगा रहता है ।  क्यों न वहीँ चला जाए !!

बात सबको जंच गई ।  बाबूजी ने आनन-फानन में तत्काल से टिकट निकलवाया और सपरिवार रमेश के साथ गावं पहुँच गए ।  कहा जाता है कि जब आप किसी के शरीर से भूत उतरवाने के लिए कहीं ले जाते हैं तो उसे इस बात की भनक भी नहीं लगने दें नहीं तो भूत उस समय के लिए उतर जाएगा और फिर जैसे ही वापस आएँगे, दुगुनी ताकत के साथ सर पर सवार हो जाएगा ।  अब इसी आशंका से रमेश को कुछ भी नहीं बताया गया ।  बस इतना ही कहा गया कि गावं में बड़े दादा की तबियत खराब होने की खबर आई है, जल्द पहुंचना होगा । 

गावं पहुंचकर जैसे ही लोगों ने अपना सामान रखा, चइला बाबा आ धमके ।  उन्हें पहले से ही खबर कर दी गई थी ।  बाबूजी गावं के दबंग सम्मानित लोगों में से थे, उनके आगमन पर वैसे ही घर में मिलने वालों का तांता लग जाता था । 

बाबाजी ने आते ही रमेश को बुलवाया ।  कुछ पूजन सामग्री, मुर्गा आदि का पहले से ही इंतजाम कर रख दिया गया था ।  रमेश जैसे ही बाहर आया चइला बाबा से बातचीत के दौरान ही दो-चार लोगों ने उसे जबरदस्ती पकड़ कर बांध दिया और फिर भूत उतारने का प्रयास प्रारम्भ हो गया । ज जाने कितने कड़वे पदार्थ आग में डाले जा रहे थे, उनका धुंवा आँखों में जलन पैदा करने लगा ।  यह धुंवा रमेश के चेहरे के पास लाकर घुमाया जाने लगा ।  रमेश की हालत खराब होने लगी ।  अब बाबाजी ने चिल्लाना शुरू किया -

बोल, के हउवे तू, कहाँ से आइल हउवे ? ई लइका पर काहे आया है? किसने भेजा है ?

रमेश क्या बोले ! बेचारा चुप था ।  उसकी चुप्पी ने लोगों के मन में और भी शक बढ़ा दिया ।  बाबा ने कहा, लगता है बहुत ही बड़ा पापी भूत है जिसने इसके ऊपर कब्जा किया हुआ है ।  इसको दुसरे ढंग से ठीक करना होगा ।  और फिर झाड़ू और डंडे से रमेश को पीटना शुरू किया । 

बोल, के हउवे तू, कहाँ से आइल हउवे ? ई लइका पर काहे आया है? किसने भेजा है?-बाबा चिल्लाने लगे । 

असहनीय मार ने रमेश को तोड़ कर रख दिया ।  रोने लगा ।  रोते-रोते बचने का कोई उपाय न देख चिल्ला पड़ा,' अरे छोड़ दे रे पापी ! चला जाता हूँ ।  अब सुधर जाऊंगा ।  जा रहा हूँ ।  छोड़ रहा हूँ !!

देखा ! ई कंगाली पिशाच रहा ।  बहुत खतरनाक होता है ! अब जब शमशान काली की लात पड़ी तो बोल उठा । 

पिटाई का क्रम कुछ देर और चला ।  मार की अधिकता और कसैले धुंवे के प्रभाव से रमेश बेहोश हो गया । 

सब खुश थे कि…............... भूत भाग गया …................................                  


Jyoti

Jyoti

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