बात पिछले साल की है । मैं छुट्टियाँ बिताने के लिए कोलकत्ता गया हुआ था । मेरे भाई के मित्र श्री बाबूलाल जी मिलने आये हुए थे । बातों बातों में उन्होंने बताया कि उनके मोहल्ले में आर्मी से सेवानिवृत एक कैप्टन रहने के लिए आये हुए हैं । कुछ बदमाश लड़के उनको तंग कर रहे हैं । उनको देखकर दया आती है । मैंने कहा ,"ऐसी स्थिति में हमें उनकी मदद करनी चाहिए , और फिर उनको उन बदमाश लड़कों के आतंक से मुक्ति दिलवाई गयी । वो अपने जीवन में रम गए ।
कुछ दिनों के बाद श्री बाबुलालजी फिर मिले । उन्होंने बताया कि 'कैप्टन साहब' मिले थे । पूछ रहे थे कि हमलोग क्या कर रहे हैं । उन्होंने बताया कि हमलोगों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी चाहिए जिससे सरकारी नौकरी मिल सके,इसके लिए उन्होंने कहा है की यदि हम चाहे तो उनके पास कोचिंग ले सकते हैं । सही मार्गदर्शन मिल जाए तो आदमी अपने लक्ष्य तक आराम से पहुच सकता है । भैया, आप क्या कहते है ? यदि कहे तो हमलोग उनसे कोचिंग लेना शुरू कर दें । भाइयों के सुनहरे भविष्य की राह आसान होता देख कौन ऐसा होगा जो मना करे । मैंने भी हाँ कर दिया ।
अपनी ओर से एक प्रशिक्षक के प्रति जो सेवा तथा सम्मान भाव होना चाहिए , भाइयों ने सबकुछ दिया । धीरे धीरे 'कैप्टन जी' ने लड़कों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया । इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी से लेकर भाग दौड़ तक के समस्त प्रशिक्षण शामिल थे । लड़कों की संख्या कम थी लिहाजा उन्होंने अपने कोचिंग सेंटर के प्रचार के लिए इनसे आग्रह किया । पहले इसका नाम 'कैप्टन कोचिंग सेंटर' रखा गया, बाद में नाम बदल कर सिर्फ 'कोचिंग सेंटर' रखा गया । प्रचार प्रसार की समस्त जिम्मेदारी भाई और उनके दोस्तों ने पूरा किया । धीरे धीरे छात्रों की अच्छी खासी संख्या एकत्रित हो गयी।
कैप्टन साहब की एक ख़ास बात थी कि कुछ विश्वस्त छात्रों को बीच - बीच में बताया करते थे कि मैं तुमलोगों को जीता पढ़ा रहा हूँ बस उतना ही पढना है । इसके बाहर से कुछ भी नहीं आता है । सबका विश्वास तो उन्होंने इतना जीत लिया था के जो सलाह देते थे,लड़के उससे हटकर कुछ भी नहीं सोचते थे । इसमें उन्होंने यह कहकर बैंक की नौकरी के लिए आवेदान करने से मना कर दिया था कि यह सरकारी नौकरी नहीं है ,तैयारी करनी है तो सिर्फ रेलवे की या फिर एस एस सी के लिए । कुछ राज की बात यह भी कहा था कि एस एस सी और रेल की प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर सेटर के समूह में से वो भी एक है । उन्हें सबकुछ पता है इसलिए उतना ही पढ़ा जाये जितना बताया जा रहा है । अब ऐसे प्रशिक्षक को पाकर कौन नहीं गदगद होगा जिसके बारे में यह पता चल जाए की ये महानुभाव पेपर सेटर हैं । आर्मी में भी अपने को रिक्रूटमेंट का एक हिस्सा बताते थे । कहा करते थे की सेना के अपने कार्यकाल का अधिकांश समय सिर्फ रिक्रूटमेंट सेल में ही बिताया है । अपने पेपर सेटर होने वाली बात की पुष्टि करने के लिए समय समय पर कुछ दिनों के लिए गुप्त यात्रा पर बाहर चले जाते थे । विश्वस्त छात्रों को पता होता था की सरजी 'पेपर सेटिंग ' के लिए गए हुए हैं । धीरे धीरे मायाजाल बढ़ता गया ।
अब उन्होंने दूरस्थ तथा पत्राचार के माध्यम से ग्रेजुएशन करवाने के लिए भी सुविधा केंद्र चलन शुरू किया । साथ ही लड़कों को बताना शुरू किया कि यदि आई टी आई कर लें तो रेलवे में नौकरी पाना आसान हो जायेगा । अपने किसी मित्र का हवाला देकर बताया की कम समय में आर टी आए का प्रमाण पत्र दिलवा देंगे । लड़कों को 'सरजी' पर पक्का भरोसा हो ही गया था ,लिहाजा लोगो ने विभिन्न कोर्स तथा आई टी आई करे के लिए अच्छी खासी रकम 'सरजी' के पास जमा करवा
दिया । ठगे जाने का असली दौर यहीं से शुरू हुआ ।
कुछ लड़कों के लिए अपने कोचिंग सेंटर पर ही परीक्षा दिलवाने की व्यवस्था करवाए । लड़कों ने परीक्षा भी दिया और परीक्षाफल की प्रतीक्षा करने लगे । महीना दर महीना बीत गया पर परीक्षा का कुछ भी परिणाम प्राप्त नही हुआ । आई टी आई के बारे में भी कुछ खबर ना मिल पाई । इस बीच 'सरजी' कुछ दिनों के लिए फिर से कहीं चले गए । फोन स्विच ऑफ कर लिए । कही कोई खबर नहीं कि कहा गए है । एक दिन किसी लड़के को उनका नंबर मिला । उसने डायल किया तो जवाब भी मिल गया । उसने पूछा कि कहाँ हैं तो जवाब मिला कि तुम्ही लोगों के काम से निकला हूँ । काम होते ही
वापस आऊँगा । इस बीच लोगों को आशंका होने लगी की वो ठगी का शिकार हो गए हैं । जब भी फोन किया जाये तो या तो स्विच ऑफ मिलता या फिर यदि बात होती तो जवाब मिलता था कि बस थोड़े दिन में ही आने वाला हूँ । धीरे धीरे पांच महिना बीत गया पर ना तो इनका आना हुआ ना ही तो किसी को उसके परीक्षा परिणामो के बारे में कोई सूचना मिली ।
मुझे भी इस बात की जानकारी मिली । मैंने उनके नंबर पर फोन किया तो जवाब तो मिल गया । मैंने पुछा कि कब आ रहे हैं तो जवाब मिला की अगले हफ्ते वापस आ जाउंगा । आने के बाद देखता हूँ । पलक पावडे बिछाए हम उनका इन्तजार करते रहे । पता लगा की वो आ तो गए हैं पर किसी और एरिया में रह रहे हैं । लड़कों में आक्रोश की भावना बढ़ती जा रही है । मेरे भाई के बैंक खाते में तो कुछ पैसा उनके तरफ से आ गया पर यह सिर्फ एक तिहाई ही था । उनके मकान मालिक ने उनके कमरे में अपने तरफ से ताला लगा दिया था की जब वो आये तो बिना लोगो से मिले अपना सामान लेकर नहीं जा सके । लड़के अपने दिए हुए पैसे के मिलने की आशा में उनके आने की प्रतीक्षा में हैं और वो नए क्षेत्र में अपना ऑपरेशन स्थापित करने में लगे हुए हैं ।