हर किसी का बचपन बड़ा निराला होता है । मेरा भी कुछ ऐसा ही था । पिताजी और अपनी नौकरी पर चले जाते थे । बस समय निकाल कर मटरगश्ती करने निकाल पड़ता था । जैसे मैं निकलता वैसे ही मेरे कुछ और मित्र भी आ मिलते थे । उन दिनों कुछ दस ग्यारह वर्ष की उम्र रही होगी । जहाँ बैठते एक नई कहानी शुरू हो जाती। मैं उसमें श्रोता बनकर ही रह जाता क्योंकि अधिकांश कहानियाँ केवल कोरी गप्पें होती थीं। और गप्पें मारना अबतक मैं सीख नहीं पाया था । हर कहानी की शुरुआत के लिए कोई न कोई मसला चाहिए था । मसला कुछ विशेष नहीं था ।
हम मंदिर के पास वाले तालाब के पास बैठे हुए थे । तालाब का पानी बाहर निकाला जा रहा था । तालाब की तलहटी में जो थोड़ा बहुत पानी बच गया था उसमें जान बचाने के लिए मछलियाँ इधर उधर भाग रही थीं। उनको पकड़ने के लिए बच्चे भी उनके पीछे पीछे । इस खेल कूद में जमीन के अंदर एक बड़ा सा छेद दिखा । एक लड़का उस छेद में हाथ डालता है और एक बड़ी सी रोहू मछली पकड़ कर बाहर निकलता है । मछली हाथ में लेकर इतना खुश था जैसे उसे राज सिंहासन मिल गया हो । उसके हाथ में पकड़ी मछली देखकर हमारे साथ बैठे मेरे एक मित्र को कहानी बताने का सूत्र मिल ही गया और फिर शुरू हो गई एक नई कहानी ।
बताने लगे -
मेरे गाँव में भी ऐसा ही एक तालाब था । तालाब क्या एक नहर के बहते हुए पानी को रोककर तालाब बना दिया गया था । उसमें भी खूब मछलियाँ थीं। एक दिन गाँव का एक लड़का उन मचलिएओन को पकड़ने के लिए एक छेद में हाथ डालता है । उस छेद में मछली की जगह एक साँप बैठा होता है । उस साँप ने उस लड़के के बाएँ हाथ की चर अंगुलियाँ काट ली। बच्चे को दर्द हुआ और उसने जैसे ही हाथ बाहर निकाला, चर अंगुलियाँ गायब देखकर उसके तो जैसे होश ही उड़ गए । अंगुली खूनए से अधिक उसे पिताजी की मार का दर सताने लगा । उसे ऐसा लगा कि अंगुली न देखकर पिताजी बहुत मारेंगे ।
मार न पड़े इसके लिए कुछ उपाय तो करना था । उसने भी एक उपाय सोच लिया । उसी तालाब की मिट्टी से उसने खूब सुंदर सुंदर अंगुलियाँ बनाई और जो अंगुलियाँ कट गईं थीं उनकी जगह उसने मिट्टी की अंगुलियाँ लगा ली और अपने घर चला गया ।
हम सब उसके इस तर्कसंगत कहानी के आगे नात मस्तक थे । बचपन में तर्क की शक्ति कहाँ होती है वह भी जब हम उम्रों के साथ हों तो ।
आगे हम कुछ पूछते कि पीछे से दादाजी की आवाज आई । दादाजी की मार न पड़े इसलिए हमने चुपके से घर की राह पकड़ी । अब सोचते हैं कि मित्र कभी मिले तो इस कहानी के बाद की बातएओन पूछूँगा पर मित्र भी प्रवासी हो गए हैं ।