भारत की कई ऐसी सरकारी कम्पनियाँ हैं जो सरकारी से निजीकरण और निजीकरण के बाद विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। इनमें से एक नाम bsnl का भी है। भारत का शायद की ऐसा कोई प्रौढ़ नागरिक होगा जिसने bsml की सेवा न देखी हो,इसकी विसंगतियों और इसके स्टाफ के नखरे न झेले हों। गाहे बगाहे कतिपय राजनैतिक दल भी इसके अस्तित्व की विलुप्ति का दोष सरकार पर मढ़ते हुए अपनी चांदी काटने का प्रयास करती रहती हैं,पर मुझे पता नहीं कि इस अभियान में उन्होंने bsnl के कितने कनेक्शन लिये होंगे या अपने कार्यकर्ताओं को bsnl के साथ जुड़ने के लिये प्रोत्साहित किया हो।खैर,इन सबके बाद भी उन सबने इसके अस्तित्व की रक्षा के लिये जाने-अनजाने प्रयास तो किया ही। पर इन सबके बावजूद न तो bsnl की स्थिति में सुधार हुआ और न ही तो ग्राहकों की संतुष्टि में।
बात तो तब और भी घातक लगने लगी जब इसके कर्मचारियों को वेतन मिलने में दिक्कत आने लगी,इसकी संपत्ति बिकने-किराए पर जाने की स्थिति में आने लगी।अस्थाई कार्मिकों की छंटनी होने लगी,vrs योजना आ गई। कई मोबाइल कंपनियां बंद हो गईं और अब bsnl की बारी थी।
बाजार का नियम है कि जो सेवा प्रदाता ग्राहकों को सुलभ दर पर अधिक सेवा दे पाएगा वही विजेता होगा। जिओ इसी सूत्र को आधार मानकर आज देश की अग्रणी कंपनी बनी हुई है। हालांकि अपनी परिसंपत्तियों और विस्तार के आधार पर bsnl कोई कम नहीं है। किसी जमाने मे जब मोबाइल सेवा आनी शुरू हुई थी,मोबाइल क्षेत्र में विकास के लिये bsnl ने अपने लैंड लाइन सेवा के स्तर में कमी करना शुरू कर दिया या यूँ कहें कि धंधा चौपट कर लिया,फलतः लैंडलाइन सेवा में निजी कंपनियों ने वर्चस्व बना लिया,पर bsnl ने गाँव-गाँव में अपने टॉवर स्थापित कर लिया।मेरे जैसे घुमंतु प्राणी के लिए अन्य सिम के साथ bsnl का भी सिम रखना अनिवार्य था।क्योंकि हर कोने में इसकी पकड़ थी।
अब धीरे-धीरे 3 और 4 जी की सेवा आई । इसमें bsnl उदासीन रही।शायद उसने ग्राहकों पर अति भरोसा कर लिया कि सेवा चाहे जितनी खराब हो ग्राहक जुड़े ही रहेंगे। पर जब विकल्प उपलब्ध हो तो कोई धक्के क्यों खाये! बुद्धिजीवी वर्ग इसमें भले ही सरकार को दोष दे पर मेरे जैसा मूढ़मति इसे bsnl का ही दोष और अहंकार मानेगा। ग्राहकों को बेवकूफ भी इन्होंने खूब बनाया है,बना भी रहे हैं।अब कलकत्ता की ही देखिये, 50 रुपये लेकर फोर्जिं(4G- सुनने में फर्जी ही लगता है) सिम में अपग्रेड कर रहे हैं पर सेवा अब भी 2 और 3 जी के बीच ही है।अब इसे क्या कहेंगे??
ऐसे ही अभ्यास के कारण धीरे-धीरे bsnl की सेवा को जनता नकारती गई और नए सेवा प्रदाता आते गए और आज की स्थित से हर व्यक्ति वाकिफ है ही।
विकास की दौड़ में कंपनियों ने शहरों में यो अच्छा विकास किया पर ग्रामीण अंचलों में किसी भी सेवा प्रदाता की सेवा अच्छी नहीं हुई।ग्रामीण अंचलों के लोग आज भी अच्छी मोबाइल सेवा को तरस रहे हैं।जो bsnl ग्रामीण अंचलों में पूर्णतः अग्रणी थी वह भी आंखे मूंदे ऐसे बैठी है जैसे शिव चिंतन में हो। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ विस्तार का अवसर है,यदि इस क्षेत्र में bsnl खुद को स्थापित कर सके तो इसे अग्रणी बनने से कोई रोक नहीं पाएगा।
हर रात के बाद सुबह होती है,डूबते को सहारा मिल ही जाता है,इसी बीच मौजूदा समस्त मोबाइल कंपनियों ने अपने रेट बढ़ा दिया। इस दर वृद्धि ने लाखों ग्राहकों को bsnl में पोर्ट करने के लिये प्रेरित किया।रिपोर्टों की मानें तो इस वर्ष एक महीने में जितने लोग bsnl में पोर्ट होकर जुड़े हैं उतने तो जिओ से भी नहीं जुड़े थे।अर्थात ग्राहकों ने अपनी ओर से bsnl में जान फूँकने की ओर पहला कदम बढ़ा दिया। कहा भी जाता है कि कस्टमर इस किंग,और इस किंग ने तो अपना काम कर दिखाया है क्या अब bsnl अपना अस्तित्व बचाने के लिये,जिजीविषा के लिये भरपूर प्रयास करेगी???