"कैसी हो ममता?"-फोन पर उधर से नवीन की आवाज सुनकर ममता का रोम रोम खिल उठा।
"मैं तो ठीक हूँ।आप कैसे है?"-ममता ने पूछा तो बहुत दिनों के बाद फोन पर बात होने की वजह से ममता की संवेदनाएं झंकृत हो गई थी।
"यहाँ तो हर वक्त जान पर बनी रहती है।सीमा पर रहते है तब पता नही चलता कि कब दुश्मन की कोई गोली आये और सीना चाक कर जाए?"-हर बार की तरह नवीन ने वस्तुस्थिति को जस का तस बयाँ कर दिया।बिना इस बात का ख्याल किये कि ममता एक औरत है और औरतों के लिए मौत की बात असहनीय पीड़ा की विषयवस्तु होती है
"आप छोड़ क्यो नही देते ऐसी सर्विस को?गांव आकर खेती कर लो।बहुत कम सुख सुविधाएं मिलेंगी बस यही न.....।"-
"छोड़ो इस बात को ये बताओ मेरी याद आती है?"-आदत के अनुसार नवीन ने रोमांटिक होते हुए पूछा।
"नही तो।भरापूरा परिवार है दिनभर हंसीखुशी का माहौल रहता है।"-
"तो फिर छुट्टी को कैंसिल करा दूँ।मुझे तो लगता था कि तुम्हे मुझसे प्रेम है।इसलिए इस बार करवाचौथ पर छुट्टी की दरख़्वास्त दी ओर इत्तफाक से मंजूर भी हो गई।लेकिन अब पता चल गया कि तुम्हे मेरी याद नही आती तो क्या फायदा घर आने का।"-शरारती लहजे में नवीन ने कहा।
"न,छुट्टी कैंसल न कराना।"-ममता ने बहुत उतावले लहजे में कहा।
"हाहाहाहा।"-
"आओगे न?"-कुछ चिंतातुर लहजे में ममता ने पूछा।
"आ रहा हूँ इस बार।बस तुम्हारे लिए।
"ममता क्या हुआ बेटी।"-बूढ़ी हो चली विद्या ने पूछा।
"कुछ नही मां बस ऐसे ही।"-कुर्सी पर से वो हड़बड़ाकर उठी और सफेद साड़ी का पल्लू सिर पर सरकाकर खड़ी हो गई।
"नवीन की याद आ गई फिर?"-झुकी कमर को थोड़ा सीथा करके उन्होंने स्नेह मिश्रित सहानुभूति के साथ ममता के सिर पर हाथ रख दिया।
ममता ने कोई जवाब न दिया।
"बेटी आरती ने नास्ता बना लिया है जाकर खा ले।"-
"नही मां आज तो करवाचौथ का व्रत रखना है आज कैसे नास्ता कर लूं?"-ममता ने कहा तो उसकी आंखें डबडबा आई थी।उसने आँखो की कोर से बह रहे आँशुओ कि लकीर को पोंछने का भी उपक्रम न किया।जैसे बोरा गई हो।
उसकी हालत देखकर विद्या के दिल मे दबी मातृत्व की ज्वाला को जैसे किसी ने प्रज्वलित कर दिया हो।उनकी आंखें भी छलछला आई।
"बेटी किसके लिए रखेगी करवाचौथ का व्रत?नवीन को गुजरे तो 6 साल हो गए।"-
"नही माँ उन्होंने कहा था।कि उनको करवा चौथ के लिए छुट्टी मिल गई है।वें जरूर आएंगे।"-ममता ने कहा।आंखों से निरन्तर आँशुओ की धार बह रही थी।
ममता की हालत देखकर विद्या को वो घटना याद हो आई।
उस दिन पूरे परिवार में सुबह से ही चहलपहल थी।घर की तीनों बहुएं करवाचौथ के व्रत और पूजन में लगी थी।आसपड़ोस की बहुओं के साथ सब घरो में आ जा रही थी।उस दिन घर का चौका बर्तन का काम विद्या ने सम्भाल लिया था।
सुबह ही ममता ने खबर दी थी कि नवीन सुबह पांच बजे श्रीनगर से फ़ौज की गाड़ी से जम्मू के लिए निकल लिए थे।फिर आगे ट्रेन से शाम तक घर पहुंच जाएंगे।
बड़ी बहू मालती जल्दी से पूजन कार्य करके टीवी खोलकर बैठ गई थी।उसे टीवी सीरियल देखने का चस्का जो था।
टीवी खोला तो न्यूज चल रही थी।वो रिमोर्ट उठाकर चैनल बदलने ही जा रही थी कि रिमोर्ट पर उसकी पकड़ ढीली हो गईं और रिमोर्ट हाथ से छूट गया।उसके मुंह से बस इतना निकला था कि,"माँ जी।नवीन भैया।"
मालती की आवाज के पीछे छुपी वेदना का ही असर था कि विद्या समेत घर मे मौजूद सब लोग एक साथ कमरे में दाखिल हुए थे।
ओर जाते ही उनकी नजर टीवी स्क्रीन पर दिख रहे पांच फोटो पर पड़ी।जिनमे एक फोटो नवीन की थी।
ओर न्यज एंकर बता रही थी।-"मिली जानकारी के अनुसार ये हमला तब हुआ जब फ़ौज के यें पांचों जवान छुट्टी पर घर जाने के लिए श्रीनगर से निकले थे लेकिन जम्मू पहुंचने से पहले ही आतंकवादियों के नापाक मंसूबो का शिकार हो गए.."
इस वाकये को 6 साल गुजर चुके है लेकिन एक स्त्री के लिए पति के इंतजार के लिए ये बहुत बड़ा वक्त नही होता।विद्या से बेहतर ममता का दर्द और कौन समझ सकता था?
बूढ़ी विद्या ने छलक आ रही आंखों को पल्लू से पोंछा ओर कमरे से बाहर निकल गई।ममता को मनाने या समझाने का कोई फायदा नही था।गुजरे छः सालों से वो निरंतर करवाचौथ का व्रत रखती आ रही है।लेकिन पता नही क्यों।ममता के करवाचौथ की प्रासंगिकता तो उस दिन खत्म हो गई थी जब तिरंगे में लिपटकर नवीन घर पहुंचा था।