काव्या की शादी बहुत ही मन्नत के बाद तय हुई थी। काव्या के इस शादी से बहुत अरमान थे। काव्या बहुत खुश थी।
बहुत धूमधाम से काव्या की शेखर के साथ शादी हुई।सुहागरात के दिन शेखर ने काव्या से कहा- काव्या देखो मै किसी और से प्यार करता हूँ देखो हम दोस्त रह सकते हैं मेरी माँ बीमार हैं इसलिए मैंने तुमसे शादी की। तुम माँ और घर की देखभाल करो।
ऐसा बोल शेखर वहाँ से निकल गया। काव्या की खुशी जैसे धरी की धरी रह गई। रात भर रो रो कर किसी तरह रात गुजार लिया।
सुबह उठी तब तक शेखर घर नहीं आया था। माँ तो खाट पर पड़ी थी उसे क्या पता था। ।
दोपहर मे शेखर घर आया।
जब शेखर घर आया तब देखा कि घर
कि पूरी की पूरी काया ही पलट गई हैं। खाने के टेबल से स्वादिष्ट खाने की महक आ रही हैं। तभी उसकी बगल की चाची आई और बोली- वाह रे शेखर तेरी बीवी तो लक्ष्मी हैं। खाने की खुशबू क्या बात हैं।
काव्या तन मन से घर की सेवा करने शेखर की छोटी छोटी बातों का ध्यान रखने लगी। शेखर काव्या को छोङ अपनी गर्लफ्रैंड पूजा से बाते करता। यहाँ तक काव्या से भी अपनी और पूजा की बाते करता। काव्या को कितनी तकलीफ होती इस बात से काव्या को बहुत तकलीफ़ होती ।
एक दिन करवाचौथ का व्रत था। काव्या ने कहा- आप समय से आ जाना। शेखर का मन नहीं था फिर भी-
हाँ कह कर चल गया। लेकिन शेखर तो पूजा के पास था।
रात भर काव्या यूँ ही भूखी रह गई। जब आधी रात मे शेखर आया तो देखा कि घर के बाहर काव्या चाँद को देख रोये जा रही हैं।
तब शेखर ने कहा- तुम यहाँ क्या कर रही हो।
काव्या ने कहा- आपका इंतज़ार।
शेखर- चलो अंदर कुछ खा लो।
शेखर रात भर सोचते रहा कि मै शायद काव्या के साथ ठीक नहीं कर रहा हूँ। क्या करूँ।
अब तो शेखर को काव्या अच्छी लगने लगी थी।
शेखर कुछ नहीं बोलता लेकिन काव्या को जरूर देखता।
कुछ ही महीनो मे शेखर की माँ चल बसी।
कुछ दिन बाद शेखर ने कहा- काव्या अब तुम आजाद हो।
तुम चाहो अपने पापा के पास जा सकती हो।
ये सुन काव्या रोते रोते समान पैक कर अपने घर
चली गई।
शेखर को लगा अब वो आजाद है। लेकिन हर जगह से काव्या की कमी लगने लगी। पूजा से भी बात करता सिर्फ काव्या काव्या करता। काव्या काव्या सुन पूजा भी उससे
बात नहीं करने लगी।
अब घर मे खालीपन ना ही काव्या ना ही उसकी आवाज ना ही उसका स्वादिष्ट खाना।
ऑफिस से आते ही वही सुनापन। काव्या तो जैसे शेखर के लिए यादों की बारात बन गई थी।
अब तो धीरें धीरें शेखर पूजा को भूल कर बस काव्या को याद करता।
एक दिन शेखर काव्या के पास मिलने ही चला गया और बोला- काव्या तुम तो मेरे लिए बस यादों की बारात बन गई थी। अब तुम याद मे नहीं मेरे जिंदगी मे चली आओ।
काव्या खूब जोर से हंस पड़ी और बोली ठीक है आ गई तुम्हारी जिंदगी मे वापस।