एक मध्यमवर्गीय स्त्री का वर्जनाओं को तोड़कर नई सफ़ल इबारत लिखने की एक कथा । जिसमें समस्त अनुभव उनके स्वयं के हैं । उम्मीद करता हूँ कि मैं कथ्य के साथ बिना किस अतिरिक्त कल्पना के यथार्थ को बरतते हुए न्याय कर पाऊंगा ।
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कहानियां यूं ही जन्म नही लेती ,ना ही उनका आकार ऐसे ही साकार होता है । हर कहानी कुछ कहती है तो कुछ नया बुनती है ,कुछ बतलाती है तो कुछ सिखलाती भी है ।आज मैं जो कहानी कहने जा रहा हूँ,उसमें भी आप सभी के ल
देश के हृदय में बसे मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर में जन्मी एक शिशु के रूप में इस बच्ची ने भी वो सारे परिवेश झेला, देखा और महसूस किया जो पुरुषवादी भारतीय समाज के कमोबेश हर लड़की को करना पड़ता है । वंश चल
बगल के लोखंडे आंटी के यहां पूजा अर्चना हो या अंकल के साथ पूजा अर्चना हर काम मे शुरू से ही तल्लीन थी रानी । अक्सर मराठी आरती को सुनते हुए वह उसके तरन्नुम में खुद को समवेत कर लेती थी । हालांकि मराठी भजन
शायद जिंदगी की खूबसूरती यही है कि सरल और सपाट हो तो एक उम्दा कहानी नही बनती और ना ही वो प्रेरणा दे पाती है । फिर हमारी ये कहानी जो मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी लड़की की कामयाबी की दास्तां है वो बिल्कुल
एमबीबीएस में एडमिशन हो चुका था । पथिक को जैसे पड़ाव मिल गया , इंसान को छोटी छोटी कामयाबी कितनी सारी खुशियां दे जाती है और साथ ही वो सारा आत्मविश्वास जो उसे और भी खूबसूरत और जिंदादिल बनाता है । इतना जिं