खिली बसंती धुप "
खिल उठी बसंती धुप
फिजा भरी अंगड़ाई
चली हवा सुगन्धित ऐसी
प्रिये जब -जब मुस्कायी |
रूप बदल नित नवीन
श्रृंगार ले रौनक लाई
अधरों मुस्कान रहा
प्रिये जब ली अंगड़ाई | |
मन मलिन कभी हुआ
सम्मुख तब तुम आई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये मन मुख मुस्कायी |
हृदय ागुंजित स्वर बेला
मंगल- बुद्धि ठकुराई
प्रेमी प्यासा पौरुष पागल
प्रिये पास जब दिखाई |
सब हुए दीवाने तुम्हारे
जादू कैसा हो चलाई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये जब तुम मुस्कायी