भाषाओं की विचित्र स्थिति समझाने समझाने वाली है। समय के अनुसार भाषा में अभिव्यक्ति की आजादी का स्वागत किया जाता रहा है। भारत में विभिन्न मतावलंबी हुए मत धर्म का प्रचार अभियान चलाया जाता रहा है। अशोक के शिलालेख जो ईसा के पूर्व तीसरी शताब्दी के मिले वे उत्तरी भारत के लिए आवश्यक और महत्व पूर्ण अमूल्य धरोहर है। इन शिलालेख पर अंकित अक्षर अशोक के ज़माने में जिस प्रकार लोग बोलते थे और समझते थे उन्हीं भाषाओं में अनूदित हैं। भारत के भिन्न भिन्न भागों की उसी प्रकार अंकित अक्षर हैं। जिसे लोग बोलते थे।
इन्होंने अपने देश के प्रमुख शिला पट्ट को, अपने विस्तृत क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न अंचलों में प्रकाशित शिलापट्ट को उसी बोली भाषा में नियम नुषार लगवाया जिस बोली भाषा को मान्यता राज्य में मिली थी।
शिलालेख से विदित होता है कि उत्तर भारत की संस्कृति सभ्यता की भाषा हिमालय पर्वत से लगातार विंध्य पर्वत क्षेत्र , सिंधु से लेकर गंगा तक मुख्यत: एक भाषा का प्रयोग होता था। परन्तु कुछ पुरातत्व वेत्ताओं का मत है कि थोड़े अलग भेद से कि उस समय तीन प्रकार की भाषाएं बोली जाती थी।जिसमें पंजाबी अथवा पश्चिमी भाषा, उज्जयिनी अथवा मध्य ( बीच)के देश की भाषा, और माधवी अथवा पूर्वी भाषा के नाम से जाना जाता था।
इन तीनों भाषाओं को पुरातत्ववेत्ताओं , सर्वेक्षण के लोगो ने ' पाली ' भाषा समझा। जबकि पंजाबी भाषा अन्य दूसरी भाषा की अपेक्षा संस्कृति से मिलती जुलती है। पंजाबी में भी संस्कृत के स श ष भी रहते हैं। उसमें प्रियदशी श्रामन शब्दों में ' र ' होता है।
उज्जैनी भाषा में ' र ' व ' ब' भी होता है। वहीं माधवी भाषा में ' र ' का लोप हो जाता है और उसके एवज में ' ल ' बोलने की प्रवृत्ति होती है। उदाह रण में राजा राम के स्थान पर लाजा लाम प्रयोग होता है। राजा दशरथ के स्थान पर लाना दशरथ बोला जाता है।
यह तो सत्य है कि संस्कृत अति प्रिय प्रसिद्ध प्राचीन काल की अनादिकालीन भाषा में है। भारत में बोल चाल की भाषा संस्कृत व्यवहार में उठ जाने के बाद प्राचीन भाषा ' पाली ' ने स्थान प्राप्त किया। जबकि पाली संस्कृति की सबसे बड़ी बेटी के रूप में स्थापित है।
शिलालेख की भाषा को बौद्ध काल के ग्रंथों से मिलान करने से ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में लंका भेजे गए शिलालेख की पुष्टि और प्रमाणित होता है कि उसकी भाषा पाली भाषा है।
पूर्व साहित्यकारों में मूर्धन्य बर्नाफ और लेसन साहब अपने ' ए से सर ल पाली ' लेख के माध्यम से लिखते हैं कि पाली भाषा ' संस्कृत की विदाई की सीढ़ी के पहले कदम पर है और वह उन भाषाआे में से पहली है जिन्होंने कि इस पूर्ण और उपजाऊ भाषा को नष्ट कर दिया ' ।
यहां न्याय प्रक्रिया में देर भले होती हो परन्तु बुद्धि की प्रबलता की कोशिश करने वालों की संख्या कम तर करके नहीं आंका जा सकता है। समय बदलना भी एक प्रमुख भूमिका में है। कई शताब्दियों के बीत जाने के बाद वर्तमान युग में जब एक नई समृद्ध सरकार का कार्य संपन्न हुआ है मोदी जी के नेतृत्व में ऐसे में बुद्धिमानी का परिचय देते हुए बताया जा सकता है कि भारत के लोगों में उपदेश साधना के पथ पर अग्रसर होते हुए आगे बढ़ रही दुनिया में भारत की संस्कृति सभ्यता और समाज जागरूक हो रहा है और लोगों द्वारा संस्कृति भाषा को मान्यता देने की मांग की गई है। स्कूल ,कालेज में यद्यपि पहले से ही किसी एन किसी रूप में पढ़ाई जाती रही है।
भारत में विविध रूप में स्थापित धर्म प्रचारक अनादिकाल से ही हैं। जिन्होंने विदेश में भी यात्रा पर रवाना हो कर दुनियां को ज्ञान दिया। उन भक्तों महापुरुषों में देवर्षि नारद मुनि, का नाम महान विभूतियों में से एक था। महर्षि व्यास जी ने भागवत कथा पुराण आदि माध्यमों से जगाया।
- सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी