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खिली बसंती धुप "खिल उठी बसंती धुप फिजा भरी अंगड़ाई चली हवा सुगन्धित ऐसी प्रिये जब -जब मुस्कायी | रूप बदल नित नवीन श्रृंगार ले रौनक लाई अधरों मुस्कान रहा प्रिये जब ली अंगड़ाई | | मन मलिन कभी हुआ सम्मुख तब तुम आई खिली बसंती धुप नई प्रिये मन मुख मुस्कायी | हृदय ागुंजित स्वर बेला मंगल- बुद्धि ठकुराई

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