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कलगुग

27 अक्टूबर 2015

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कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है..
..

मिले अगर भाव अच्छा, जज भी कुर्सी बेच

देता है,

तवायफ फिर भी अच्छी, के वो सीमित है कोठे

तक..

पुलिस वाला तो चौराहे पर वर्दी बेच देता है,

जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी..

के जिस बेटी की खातिर बाप किडनी बेच देता है,

कोई मासूम लड़की प्यार में कुर्बान है जिस पर..

बनाकर वीडियो उसका, वो प्रेमी बेच देता है,

ये कलयुग है, कोई भी चीज़ नामुमकिन

नहीं इसमें..

कली, फल फूल, पेड़ पौधे सब माली बेच देता है,

किसी ने प्यार में दिल हारा तो क्यूँ हैरत है

लोगों को..

युद्धिष्ठिर तो जुए में अपनी पत्नी बेच

देता है...!!

धन से बेशक गरीब रहो

पर दिल से रहना धनवान

अक्सर झोपडी पे लिखा होता है "सुस्वागतम"

और महल वाले लिखते है "कुत्ते से सावधान"

प्रियंका

प्रियंका

बेहतरीन रचना

27 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

ज़िन्दगी के करीब आपकी हृदयस्पर्शी रचना!

27 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अनुज जी, विविध रंग हैं आपकी इस रचना में ! कहीं जोश तो कहीं मार्मिक अभिव्यक्ति...और पूरी कविता में एक गहन मंथन भी ! युवाओं से नव परिवर्तन की बहुत उम्मीदें हैं, किसी से कोई शिकायत, कोई झगड़ा नहीं; बस एकजुट होकर ये तस्वीर बदलनी है ! अनुज जी, इसी प्रकार 'क्रिएटिव' लिखते रहिये, 'प्रोज़' 'पोएट्री' जो भी आप चाहें ! लेख प्रकाशन हेतु बहुत-बहुत बधाई !

27 अक्टूबर 2015

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