KUBER MISHRA
मेरा परिचय पूछ रहे हो, कैसे मैं पहचान बताऊँ, खिलते मुरझाते फूलों के, कैसा परिचय पत्र दिखाऊँ; नहीं प्रमाण पत्र है कोई, शिखर विजय या सिन्धु थाह की खोज रहा है अभी स्वयं ही, खुद को खुद अस्तित्व हमारा; कहीं उठे पतझड़ के, झंझावातों में उड़ते पातों सा, किसी विपिन में किसी वृंत पर, खिला हुआ कर्तृत्व हमारा; सरित धार में बहता तिनका, कैसे तट के हाल सुनाऊँ, मेरा परिचय --'।। नभ विजयी संपाती के ही, पास कहीं पर नन्हा पंछी, सिन्धु सेतु पर रेत डालता, मिल जाये अपनी ही रौ में; या फिर यज्ञ कुंड में अक्षर, समिधा का जो हवन चल रहा, वही समझ लो परिचय मेरा, किसी धुँयें की लिपटी लौ में; जो संचालक जगत नियन्ता, अवलंबन एहसान जताऊँ, मेरा परिचय ---।। कविता के आवारा शब्दों, सा गढ़ता निर्जन पथ राही, जलते अंतिम पायदान पर, किसी ग़ज़ल की सुर्ख बहर में; या फिर सागर की बाहों से, दूर भागती धुंधली सी कुछ, परिचय हो सकता है मेरा, तट से लौटी किसी लहर में; खुद ही जान न पाया जिसको, भन्ते कितने नाम गिनाऊँ, मेरा परिचय --'-।।