मेरा परिचय पूछ रहे हो, कैसे मैं पहचान बताऊँ,
खिलते मुरझाते फूलों के, कैसा परिचय पत्र दिखाऊँ;
नहीं प्रमाण पत्र है कोई,
शिखर विजय या सिन्धु थाह की
खोज रहा है अभी स्वयं ही,
खुद को खुद अस्तित्व हमारा;
कहीं उठे पतझड़ के,
झंझावातों में उड़ते पातों सा,
किसी विपिन में किसी वृंत पर,
खिला हुआ कर्तृत्व हमारा;
सरित धार में बहता तिनका, कैसे तट के हाल सुनाऊँ,
मेरा परिचय --'।।
नभ विजयी संपाती के ही,
पास कहीं पर नन्हा पंछी,
सिन्धु सेतु पर रेत डालता,
मिल जाये अपनी ही रौ में;
या फिर यज्ञ कुंड में अक्षर,
समिधा का जो हवन चल रहा,
वही समझ लो परिचय मेरा,
किसी धुँयें की लिपटी लौ में;
जो संचालक जगत नियन्ता, अवलंबन एहसान जताऊँ,
मेरा परिचय ---।।
कविता के आवारा शब्दों,
सा गढ़ता निर्जन पथ राही,
जलते अंतिम पायदान पर,
किसी ग़ज़ल की सुर्ख बहर में;
या फिर सागर की बाहों से,
दूर भागती धुंधली सी कुछ,
परिचय हो सकता है मेरा,
तट से लौटी किसी लहर में;
खुद ही जान न पाया जिसको, भन्ते कितने नाम गिनाऊँ,
मेरा परिचय --'-।।
■■■