बातें भले ही कुछ भी हो ,रोज आना- जाना रोज का सैंपल पहुंचाना, क्या नहीं करते हम खर्चा उनको देते हैं लेकिन वह यह सोचते ही नहीं कि हम अपनी जेब से खर्चा भरकर उनके सैंपल पहुंचाते हैं अब करें भी क्या, हमें मजबूर में कुछ काम जो निकलवाना है उनसे ,है कुछ हमारी मजबूरी भी ,कुछ आगे बढ़ना है कुछ पढ़ाई करनी है कुछ नया कैरियर बनाना है अब कैरियर बनाने के लिए हमें कुछ छुट्टी तो चाहिए ही बस इसीलिए हम कुछ नहीं कहते है ताकि वह खुश रहे और खुशी-खुशी हमारे काम भी मना ना करें ,बातें और भी है लेकिन इनसे पहले हम आपको एक कहानी बताते हैं बड़ी मजेदार,,,, एक लड़की है ।12वीं क्लास तक अपने गांव में पढ़ती थी। फिर वह एक डॉक्टर बनना चाहती थी और उसके पिताजी ने उसका फॉर्म भी बनवाया वह चाहती थी कि थोड़ा तैयारी के लिए क्रैश कोर्स करें पर उसके पापा ने कहा कि बाहर नहीं भेजेंगे ,वह लड़की एग्जाम में देती है अच्छे मार्क्स भी आते हैं चार-पांच नंबरों से रह जा रही है और वह बार-बार कह रही है कि मुझे क्रैश कोर्स करवाओ या फिर मुझे कोई कोचिंग सेंटर जॉइन करवाओ ,लेकिन उसे कोई भेज नहीं रहा अब उसके पापा ने क्या किया उसका एक नर्स का फॉर्म भर दिया वह भी दसवीं के स्तर का, वह इससे खुश नहीं थी ना उस ट्रेनिंग में जाना चाहती थी जब उसके ऊपर पूरे रिश्तेदार घर वाले सभी उस पर प्रेशर बनाने लगे तो अब वह करें क्या ?उसकी इच्छा का तो दम घुटता जा रहा था ट्रेनिंग में नंबर आ गया अब वह ट्रेनिंग करने भी चली गई है लेकिन उसका मन नहीं है वह बार-बार कह रही है कि मुझे डॉक्टरी करना है हालांकि उसके पापा ने उसके फार्म भरवाए लेकिन उसको कोचिंग सेंटर नहीं भेजा ।उस लड़की को यह तो पता था कि पढ़ना है ,भरवाए गए फोरम में से उसने कुछ परीक्षा भी दी लेकिन वह इसमे सीट नहीं पा सकी उसको आयुर्वेदिक मिली एलोपैथिक नहीं मिली, होम्योपैथी मिली लेकिन इनमें वह जाना नहीं चाहती थी क्योंकि उसको एलोपैथी नहीं मिल रही थी ,मन मार के वो ट्रेनिंग कर रही थी ट्रेनिंग भी पूरी हो गई ट्रेनिंग पूरी करने के बाद में जब उसने ड्यूटी ज्वाइन की तब भी उसका मन नहीं था तब भी उसके पिताजी कह रहे थे अच्छी है नौकरी तो लग गई।आग की कहानी अगले भाग में,,,,,,,,?????????॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰