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“कुंडलिया”उगते

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“कुंडलिया”उगते सूरज की तरह दे प्रकाश हर ग्रंथ। हो कोई भी सभ्यता सबके सुंदर पंथ॥ सबके सुंदर पंथ संत सब एक समाना। मानव ममता एक नेक भर लिया खजाना॥ कह गौतम कविराय हाय रे हम क्यों भुगते। कहाँ गई कचनार कहाँ अब मृदु फल उगते॥महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

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