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कविता-कन्या

24 जून 2016

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कविता-कन्या

लाल बिहारी लाल

 

कन्या एक शब्द नहीं

बल्कि सृष्टि सृजन की

कर्णधार है।

  यह नारी का रुप लेकर

  ता-उम्र नाड़ी की तरह

  सतत संघर्षशील रहती है।

इसके सहयोग के बिना

समस्त कर्म अधूरा है

यहां तक कि वंश

चलाने की बात करने वालों,

तुम्हारी भी जननी कन्या ही है।

यदि कन्या ही नहीं रहेगी

तो फिर वंश कैसे चलेगा।

  अतः अभी भी समय है

  रोकों भ्रूण हत्या जैसी

  इस जघन्य अपराध को वरना ढ़ूढ़े

  समाज में लड़की नहीं मिलेगी

  फिर लड़का को बनना पड़ेगा-संन्यासी।

 

 

 

 *         सचिव-लाल कला मंच, नई दिल्ली

       फोन-9868163073 या 7042663073

 

 

 

 

 

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