shabd-logo

common.aboutWriter

no-certificate
common.noAwardFound

common.books_of

lokeshnadeesh

lokeshnadeesh

दिल की गहराइयों में उपजे भावों के अक्षर मोती कविता में पिरोने वाला एक शिल्पी

0 common.readCount
0 common.articles

निःशुल्क

lokeshnadeesh

lokeshnadeesh

<p>दिल की गहराइयों में उपजे भावों के अक्षर मोती कविता में पिरोने वाला एक शिल्पी <br></p>

0 common.readCount
0 common.articles

निःशुल्क

common.kelekh

वो गाँव दर्द का है और ठहरना है अभी

23 सितम्बर 2017
1
1

अपने होने के हर एक सच से मुकरना है अभीज़िन्दगी है तो कई रंग से मरना है अभीतेरे आने से सुकूं मिल तो गया है लेकिनसामने बैठ ज़रा मुझको संवरना है अभीज़ख्म छेड़ेंगे मेरे बारहा पुर्सिश वालेज़ख्म की हद से अधिक दर्द उभरना है अभीनिचोड़ के मेरी पलक को दर्द कहता हैमकीन-ए-दिल हूँ मैं

मुश्किल रहा है वो

10 जुलाई 2017
0
0

खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वोअब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वोजिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझकोखुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वोक्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ मेंमुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वोपहुँचेगा हकीकत तक दीदार कब सनम कासपनों के मुसाफिर की मंज़िल रहा है वोकैसे यक़ीन

ख़ुदकुशी करते रहे

9 जुलाई 2017
5
2

यूँ मुसलसल ज़िन्दगी से मसख़री करते रहेज़िन्दगी भर आरज़ू-ए-ज़िन्दगी करते रहे एक मुद्दत से हक़ीक़त में नहीं आये यहाँ ख्वाब कि गलियों में जो आवारगी करते रहे बड़बड़ाना अक्स अपना आईने में देखकर इस तरह ज़ाहिर वो अपनी बेबसी करते रहे रोकने कि कोशिशें तो खूब कि पलकों ने पर इश्क़ में पागल थे आंसू ख़ुदकुशी करते रहे आ गया

वक़्त बिताया जा सकता है

8 जुलाई 2017
3
0

यूँ भी दर्द-ए-ग़ैर बंटाया जा सकता हैआंसू अपनी आँख में लाया जा सकता हैखुद को अलग करोगे कैसे, दर्द से बोलोदाग, ज़ख्म का भले मिटाया जा सकता हैमेरी हसरत का हर गुलशन खिला हुआ हैफिर कोई तूफ़ान बुलाया जा सकता हैअश्क़ सरापा ख़्वाब मेरे कहते हैं मुझसेग़म की रेत पे बदन सुखाया जा

शामिल रहा है वो

7 जुलाई 2017
1
0

खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वोअब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वोजिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझकोखुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वोक्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ मेंमुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वोपहुँचेगा हकीकत

तुम्हारे हिज़्र में

6 जुलाई 2017
4
1

गिर रही है आँख से शबनम तुम्हारे हिज़्र में एक ही बस एक ही मौसम तुम्हारे हिज़्र में क़तरे-क़तरे में शरारों सी बिछी है चांदनी बन गयी है हर ख़ुशी मातम तुम्हारे हिज़्र में आईना-ओ-

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए