बचपन का घर जहाँ रहती थी,
बचपन की सारी खुशियाँ होती थी।
जहाँ दादा दादी का प्यार होता था,
जहाँ माँ बाबा का लाड़ होता था।
जहाँ चाचू बुआ का दुलार होता था,
वहीं भाई बहन का लड़ाई वाला प्यार होता था।
जिन्होंने अंगुली पकड़ के चलना सिखाया,
जिन्होंने संस्कारों की धरोहर दिया।
जिनके संग होती थी हमारी शरारतें,
जिन्होंने लाड़ प्यार से भरा जीवन दिया।
भला -बुरा, ऊंच -नीच,
अपने -पराये खुशी- गम,
बहुत सारी ज्ञान की बातें जिन्होंने,
सीख लाये।
जिनके संग होती थी हम सब की,
खट्टी मिठी बातें।
कितने प्यार से रहते थे हम सब,
अपने बचपन के घर में,
थोड़ी तकरारें भी होती थी अपने,
बचपन के घर में।
फिर भी सब मिलजुल कर रहते थे,
अपने बचपन के घर में।
बहुत कुछ सीख भी मिल जाता था,
खेल खेल में।
अपनों के संग अपने बचपन के घर में,
नही किसी चीज की फिक्र होता था।
बस आजादी से बचपन बीतता था,
अपने बचपन के घर में अपनों के संग,
आज भी सब कुछ याद है,
बचपन के घर के बीती बातें,
उन्हें याद करके आज भी ऑंखें,
गीली हो जाती है।
आज भी सब कुछ यादों में वैसे ही है,
बस हम ही कुछ ज्यादा बड़े हो गए,
अपने बचपन के घर में।
आज अपने बचपन के घर की बगिया को फिर से लिख, कर महाका दिया यादों से कैसे बचपन को अलविदा कह दूँ ।।
श्वेता कुमारी।