माँ तू अम्बर है, माँ तू समंदर है,
माँ तेरे कदमों में, सुख कितना सुंदर है।
तूने आकार दिया, तूने ही प्यार दिया,
मंजिल पर जाने का, तूने आधार दिया।
गिरकर संभलने की, उठकर फिर चलने की,
तूने ही साहस दिया,तूने ही हिम्मत दी।
मन की उदासी में, दिल की रुसवाई में,
हाथ फेर सिर पर , आँचल की छाँव दी।
झूठ का सहारा नहीं, सत्य से किनारा नहीं,
कर्तव्यपथ पर चलने की, तूने ही सीख दी।
तेरे नाम से है मेरा नाम,
तेरे मान से है मेरा मान,
माँ तुझे प्रणाम!
माँ तुझे प्रणाम !!
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर