ऐ! चाँद ,ऐ! चाँद ,
आऊँगा तेरे पास एक दिन,
पूछूँगा तेरा धर्म,
हिन्दू है या इस्लाम,
क्योंकि चौथ पर पूजते हैं तुझे हिन्दू,
और ईद पर मुसलमान।
क्यों नहीं देता संदेश,
अपने इन बंदों को,
कि मैं न हिन्दू हूँ,
और न मुसलमान,
मैं न अल्लाह हूँ,
और न ही भगवान,
मैं तो हूँ,
प्रकृति का एक वरदान,
देता हूँ धवल रोशनी,
और शांति का पैगाम।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर