चाँदनी रात में बैठा हूँ उसकी याद में,
वो कब आएगी मुझसे बतियाएगी,
उसकी प्यारी-प्यारी बातें लोरी सी लगती हैं,
उसकी कजरारी आँखें झील सी दिखती हैं,
मैं उन झील सी कजरारी ऑंखों में डूब जाता हूँ।
उसका हल्का सा स्पर्श मुझे जगाता है,
मैं उनींदा सा उठकर बैठ जाता हूँ,
देखता हूँ आसपास सन्नाटा है,
अरे! मैं तो स्वप्ऩ देख रहा होता हूँ,
स्वप्ऩ में ही प्रियतमा से मिल लेता हूँ।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर