धरती पर मौजूद प्रत्येक इंसान का अस्तित्व, मां के कारण ही है। मां के जन्म देने पर ही मनुष्य धरती पर आता है और मां के स्नेह दुलार और संस्कारों में मानवता का गुण सीखता हैं। ‘मां!’ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनोःमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। हर संतान अपनी मां से ही संस्कार पाता है। लेकिन मेरी दृष्टि में संस्कार के साथ-साथ शक्ति भी मां ही देती है। इसलिए हमारे देश में मां को शक्ति का रूप माना गया है और वेदों में मां को सर्वप्रथम पूजनीय कहा गया है।
मेरे सीने में उनका दिल धड़कता है। जिसकी छाया में मेरा नसीब रहता है। कौन कहता है उसका कोई नही देख उनके सर पर सदा एक आँचल रहता है। वात्सल्य उनका छलकता मुझ पर जाने मेरे आस पास कैसा गंध रह
माँ का प्रेममाँ के आँचल में बसी है, दुनिया सारी प्यार की,उसकी ममता में छुपी है, सौगातें संसार की।उसकी आँखों में जो सपना, हर पल सजीव रहता,बच्चे की मुस्कान में ही, उसका जीवन बसता।वो आँसू पोंछ देगी हर, द
नास्ति मातृसमा छायाः नास्ति मातृसमा गतिः । नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा। | स्कंद पुराण के संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है " माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नह
मां की ममता अपार बरसती।कभी बच्चों में भेद न करती।चाहे रंग वर्ण में अंतर दिखे,सब स्नेह भाव एक रखती।।मां की ममता दूर छल कपट।खेल खिलौने होते छीन झपट।देख तनिक भ्रम में पड़ जाए,रोना चीखना हो मां को लपट।।मा
माँ, जननी, अम्मा, अम्मी, आईइन शब्दों मे पूरी दुनिया समाई अपने पराए सारे रिश्ते धोखा दे देएक मां ही है जो अपने आंचल की छांव दे।जिस दिन मैं धीमी स्वर में बात करूंपता नही मां कैसे पहचान लेते है
'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।। अर्थात मां के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। मां के समान इस संसार में कोई जीवन