है पतझर ये प्रेम देखो आता जिसमें मधुमास नहीहै गीत विरह का गुँजनगाता जिसमें मधुमास नही।हैं बिछड़ जन प्रेमी जिसमेंबजते हैं स्वर विरह काटूटा है पत्ता डाली सेगाता जिसमें मधुमास नही।रूठी रूठी दुन
गीतमधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।महकी हुई फिजाएं, मनको लुभा रही है।जब फूल-फूल तितली, खुशबू बिखेरती थी।महकी हुई हवाएं, संवाद छेड़ती थी।कोयल सदा वनों में, हैं राग प्रीत गाये।मौसम वही सुहाना, मुझको सदा लुभाये।महकी हुई धरा मन, मेरा लुभा रही है।मधुमास के दिनों की, कुछ याद आ रही है।भौंरे क