है पतझर ये प्रेम देखो
आता जिसमें मधुमास नही
है गीत विरह का गुँजन
गाता जिसमें मधुमास नही।
हैं बिछड़ जन प्रेमी जिसमें
बजते हैं स्वर विरह का
टूटा है पत्ता डाली से
गाता जिसमें मधुमास नही।
रूठी रूठी दुनिया भी
रूठा जब प्रियतम उसका
सब निष्ठुर से लगते हैं, फिर
गाता जिसमें मधुमास नही।
कैसी अलबेली प्रीत है
सब अपना होकर पास नही
आँखों में आँसू हैं भरभरकर,पर
बुझती भी कभी भी प्यास नही।