महाभिनिष्क्रमण: महज शब्द नहीं है, बल्कि इसमें छिपी अंतर्मन की आसक्ति है, जिससे बहिष्कृत हो कहीं अनंत में घुल जाने की उत्कंठा निहित है। इस पुस्तक (डायरी) का उद्देश्य अपने विचार थोपना नहीं, अपितु एकात्म को परिष्कृत कर ब्रह्मांड में नतमस्तक होना है।
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<p>पराए वक्त की थाती में सांस ढोता शरीर नींद ले रहा था, तभी मस्तिष्क पर कुछ दस्तक हुई और हड़बड़ा कर
<p>बातें जब ज्ञान या ध्यान की हों, अध्यात्म या दर्शन की हों, धर्म या पौराणिकता की हों, जीवन-मृत्यु य