पेट पराया नहीं।पढ़ना,लिखना,हसना,रोना खेल बना गया हैं।पढ़-लिखकर हर इंसान बेरोजगारबन गया हैं।जनता-जनार्दन नेताओं की फेरेवाली माला हैं।जहाँ देखो वही इंसान के साथगड़बड़ झाला हैं।पेट पराया हो नहीं सकता इसीवजह से अपनाए हैं।वर्ना न जाने कब पेट को भीगहने रख आते।बन सहनशाह सड़कों के,ब्यर्थ मे जीवन को बिताते।बैठ दो