पेट पराया नहीं।
पढ़ना,लिखना,हसना,
रोना खेल बना गया हैं।
पढ़-लिखकर हर इंसान बेरोजगार
बन गया हैं।
जनता-जनार्दन नेताओं की फेरे
वाली माला हैं।
जहाँ देखो वही इंसान के साथ
गड़बड़ झाला हैं।
पेट पराया हो नहीं सकता इसी
वजह से अपनाए हैं।
वर्ना न जाने कब पेट को भी
गहने रख आते।
बन सहनशाह सड़कों के,
ब्यर्थ मे जीवन को बिताते।
बैठ दो चार दोस्त गलियो गलियों
के कोने मे बतियाते।
पेट पराया हो नहीं सकता, इस
बात से पछताए हैं।
पेट से ही इस जहाँ मे, मालिक
नौकर का रिश्ता हैं।