जो है दिखाई देता क्या वह सच है
क्या सच है जो दिखाई देता है
फिर ये असमंजस कैसा है
है सच तो ये यकीन क्यो नहीं है
तेडे मेडे से होते है रास्ते मंजिल के
पर जब भी देखे आँखे
रस्ते सीधे दिखाई क्यो दे
कांटों- फूलो से करती है
स्वागत हर मंजिल मुसाफिर की
मुसाफिर फिर भी कहता है
सफर जारी था जारी है
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)