बिहार हमेशा से ज्ञान की धरती रही है। यह धरती है जहाँ बुद्ध को भी ज्ञान प्राप्त हुआ और इसके बाद कई महान विभूति आये जिन्होंने बिहार की विद्वत्ता को पूरे देश और विश्व में फैलाया। चाहे वो आर्यभट्ट हों, रामधारी सिंह दिनकर, राजेन्द्र प्रसाद, एचसी वर्मा, वशिष्ठ नारायण या बाबा नागार्जुन। सिलसिला यहाँ भी न थमा। बिहार वो धरती है जहाँ के लोग भारत की प्रशासनिक परीक्षा में आधी सीटों पर अपना कब्जा जमा लेते हैं। केंद्र के कई मंत्रालयों में सचिव भी आपको बिहार से ही मिलेंगे। बिहार की देशभर में एक यह भी पहचान है। लेकिन इनके पीछे उनके गुरु का भी एक खास योगदान होता है। इसके लिये खुद में जितनी प्रतिभा आवश्यक है उससे कहीं ज़्यादा आपको तराशकर बाकियों से मुकाबले के लिये सक्षम बनाने वाले गुरु भी।
हम बात कर रहे हैं पटना के मशहूर शिक्षक “गुरू रहमान” के बारे में। आज के दौर में जहाँ कोचिंग संस्थान हज़ारों-लाखों में अपनी फ़ीस लेते हैं, बिहार में एक ऐसे गुरू हैं जिन्होंने मात्र 11, 21 और 51 रु की गुरुदक्षिणा लेकर न जाने कितनों को प्रशासनिक अधिकारी बनाकर बड़े-बड़े पदों तक पहुंचा दिया। हम चाहें तो इन्हें आधुनिक युग का “चाणक्या” भी कह सकते हैं।
गुरु रहमान ने अपना समस्त जीवन शिक्षा को समर्पित कर दिया। इन्होंने पटना में अदम्य अदिति गुरूगुल की स्थापना की। यहाँ से पढ़कर हर साल अनगिनत छात्र डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, प्रशासनिक अधिकारी और कई क्षेत्रों में आगे जाते हैं।
गुरु रहमान ने अपने गुरूगुल “अदम्य अदिति गुरूगुल” की स्थापना 1994 में कई थी। स्थापना के वर्ष में ही उन्होंने कई ऐसे हीरे तराशे कि आंकड़े पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। उस साल बिहार सरकार को इंस्पेक्टर की 4000 रिक्तियां भरनी थी। जब परीक्षा हुआ तो 4000 में से अकेले 1100 छात्र गुरु रहमान के अदम्य अदिति गुरूगुल से थे।
गुरु रहमान का कहना है कि शिक्षा ही एक मात्र तरीका है जिसके माध्यम से भारतीय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पाएंगे और समाज की मुख्य धारा से जुड़ पाएंगे। बिहार के ही नहीं बल्कि झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के विद्यार्थी भी रहमान के दिशा निर्देश के लिए गुरुकुल आते हैं। अदम्य अदिति गुरुकुल के बच्चोँ ने देश के लगभग हर प्रतियोगी परीक्षा में सफल होकर अपनी छाप छोड़ी है।
गुरु रहमान शिक्षा के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन के बाद भी समाज को कुछ देना चाहा है। उन्होंने देहदान की भी घोषणा की है। ऐसे लोग हमारे जीवन और हमारे समाज में बड़े प्रेरणास्रोत बनकर आते हैं।
मात्र 11 रु गुरुदक्षिणा लेकर बिहार के इस गुरु ने न जाने कितनों को बना दिया बड़े प्रशासनिक अधिकारी