ट्रेन के अंदर बिकने वाली वो पनीली सी चाय याद है? बेस्वाद. फीकी. पता है, उसके घटिया स्वाद का राज क्या है? शायद दूध ठीक से नहीं डालते. शायद अच्छी चायपत्ती नहीं इस्तेमाल करते. शायद चाय को ठीक से उबालते नहीं. या फिर शायद ये कि उसमें ट्रेन के शौचालय का स्वाद घुला रहता है!
मुंह मत बनाइए, सबूत देख लीजिए
सोशल मीडिया पर एक विडियो शेयर हो रहा है. इसमें एक ट्रेन के अंदर का हिस्सा नजर आ रहा है. एक दरवाजा दिखता है. उसके ऊपर ‘पाश्चात्य शैली’ लिखा है. यानी ये ट्रेन का कमोड वाला शौचालय है. ट्रेन के अंदर सामान बेचने वाले वेंडर्स जो नीली वर्दी पहनते हैं, उसी वर्दी में एक आदमी नजर आता है. वो इधर-उधर चहलकदमी कर रहा है. ट्रेन किसी प्लेटफॉर्म पर रुकी है. ये आदमी गेट पर जाकर बाहर झांकता है. मानो रेकी कर रहा हो. फिर वो टॉइलेट के अंदर आता है. टॉइलेट में पहले से एक आदमी है. उसकी ही जैसी वर्दी पहने. अंदर वाला आदमी उस आदमी को फटाफट एक चाय की टंकी पकड़ाता है. वो स्टील वाला बर्तन, जिसमें नीचे की तरफ टोंटी लगी रहती है. ये आदमी जल्दी-जल्दी उस चाय की टंकी को लाकर गेट पर रखता है. फिर लौटता है. अंदर वाला आदमी उसे एक और टंकी पकड़ाता है. ये उसको भी बाहर गेट के पास रखता है.
फिर वो अंदर वाला आदमी तीसरी बार चाय की टंकी लेकर खुद भी टॉइलेट से बाहर निकल जाता है. फिर उसकी नजर मिलती है उस इंसान से, जो इन सारी हरकतों का विडियो बना रहा है. विडियो बनाने वाला उस वेंडर से कुछ कहता है. हमें वो भाषा नहीं आती. मगर हाव-भाव से लगता है कि वो सवाल कर रहा हो. कि यहां चल क्या रहा है. वेंडर झेंपकर सफाई देने लगता है. मानो वो चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया हो. तब तक बाहर गेट पर जो बर्तन रखा है, उसे लेने एक आदमी पहुंचता है. वो भी वर्दी में है. जैसी वर्दी कैंटीन वाले पहनते हैं. भूरे रंग के चेक वाली कमीज और नीली पैंट. वो बर्तन उठाकर ले जाता है.
इस विडियो को देखकर आपको क्या लगा? कि चाय बनाने के लिए वो शौचालय वाला पानी इस्तेमाल किया गया. विडियो शेयर करने वाले लोग भी यही लिख रहे हैं. विडियो के साथ मैसेज चल रहा है-
रेलवे का सफर करते समय चाय या कॉफी न पिएं. शौचालय के पानी का उपयोग किया जाता है.
इस विडियो की सच्चाई क्या है?
ये सच्चा विडियो है. मतलब जो दिख रहा है, वो सच में हुआ. रेलवे और IRCTC ने इसकी पुष्टि की है. इनके मुताबिक, ये तेलंगाना के सिकंदराबाद की घटना है. जो ट्रेन नजर आ रही है, वो चारमीनार एक्सप्रेस है. रेलवे का कहना है कि ये दिसंबर 2017 का वाकया है. सोशल मीडिया पर इसके खूब शेयर होने के बाद रेलवे ने कार्रवाई की. वेंडर पर एक लाख का जुर्माना लगा दिया. रेलवे के मुताबिक, नीली शर्ट में दिखने वाले लोग चारमीनार स्टेशन पर कैटरिंग करने वाली कंपनी के हैं. रेलवे के मुताबिक, विडियो के आखिर में प्लेटफॉर्म पर खड़ा जो तीसरा शख्स है, उसका नाम है पीएन जयचंद्रा. वो पी शिवप्रसाद नाम के रेलवे कैटरर के लिए काम करता है. ये सब माना रेलवे ने, लेकिन एक बहानेबाजी भी कर दी. कहा कि वो लोग टॉइलेट के भीतर पानी नहीं भर रहे थे. बल्कि दूध को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाल रहे थे. रेलवे के मुताबिक, जयचंद्रा ने पूछताछ में ये बताया.
रेलवे के कान उमेठे जाने चाहिए
एक लाख रुपये का जुर्माना लगाकर रेलवे को लगता है कि उसने अपना फर्ज निभा दिया है. जो कि सच नहीं है. रेलवे से पूछा जाना चाहिए. कि उसके पास जयचंद्रा की बात पर यकीन करने का क्या आधार है? दूध पलटना होता, तो टॉइलेट के अंदर जाने की क्या जरूरत थी? इतनी सतर्कता बरतने की क्या जरूरत थी? आगे आकर देखना कि कोई देख तो नहीं रहा. फिर फटाफट बर्तन बाहर लाना. इतना जतन करने की जरूरत ही क्या थी? आप सोचकर देखिए.
एक लाख का जुर्माना लगाने से क्या होगा? जाने ये कब से चल रहा होगा. वो तो उस दिन किसी की नजर पड़ गई. उसने विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया. और विडियो वायरल हो गया. अगर ये सब सामने नहीं आया होता, तो अभी भी चल रहा होता. कौन जाने, चल भी रहा हो. बहुत सारे और भी कैटरर-वेंडर ऐसा ही करते हों. रेलवे को चाहिए था कि सारे दोषियों को ब्लैक लिस्ट कर दे. लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने, उन्हें शौचालय के अंदर की पानी मिली चाय पिलाने की सजा बस एक लाख रुपये? और वो भी रेलवे की जेब में. रेलवे की भी तो जिम्मेदारी है. अपने लाइसेंसी कैटरर्स और वेंडर्स की बदतमीजी, उनकी धोखाधड़ी के लिए तो रेलवे भी जिम्मेदार हुआ.