किसी यूनिवर्सिटी के लिए इससे बुरा क्या ही होगा कि उसे शहर के सबसे सुलगते हिस्से में तब्दील कर दिया जाए!
क्या होगा इससे बुरा कि किसी यूनिवर्सिटी के सामने पुलिस और RAF के जवानों से लदे 20 ट्रक खड़े हों और उन सबके हाथ में लाठियां हों. 30 जनवरी 1948 के बाद हमने कब ही लाठी सहारे के लिए इस्तेमाल होते देखी है?
इससे बुरा क्या होगा कि एक गुंडे की छवि वाले संगठन से पिटने के बाद एक यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स किसी पर भरोसा करना ही बंद कर दें. वो हर किसी को शक की निगाह से देखने लगें.
और क्या ही होगा इससे बुरा कि एक यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स पढ़ाई छोड़कर प्रधानमंत्री का पुतला फूंकने में लग जाएं.
सभी तस्वीरें: निखिल वाठ और रजत सैन.
हम बात कर रहे हैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की, जो पिछले कुछ दिनों से आपके कानों में गूंज रहा है. और इस यूनिवर्सिटी के साथ जो एक और नाम लिया जा रहा है, वो है मोहम्मद अली जिन्ना. किसी के लिए ‘पाकिस्तान के कायद-ए-आजम जिन्ना’. किसी के लिए ‘भारत के बंटवारे के ज़िम्मेदार जिन्ना’.
लेकिन 4 मई की सुबह जब दी लल्लनटॉप AMU पहुंचा, तो हमें वहां एक अलग ही सूरत दिखी. हमारे रिपोर्टर निखिल ने बताया कि पुलिस सुबह से ही AMU के बाहर तैनात थी. न तो पुलिस किसी को AMU के अंदर घुसने देना चाहती थी और न स्टूडेंट्स किसी को कैंपस में दाखिल होने देना चाहते थे.
इसकी वजह ये है कि स्टूडेंट्स को लगता है कि पिछले तीन दिनों में किसी भी मीडिया हाउस ने उनके पक्ष को ईमानदारी से जनता के सामने नहीं रखा. ये स्टूडेंट्स खुद को जिन्ना विवाद से अलग बता रहे हैं. इनकी नाराजगी की इकलौती और सबसे बड़ी वजह ये है कि 2 मई को इन्हें पुलिस और एक हिंदू संगठन के लोगों ने क्यों पीटा.
आपको ये हैरानी की बात लग सकती है कि जब मीडिया में पूरा विवाद जिन्ना के इर्ग-गिर्द दिख रहा है, तो स्टूडेंट्स खुद को इस विवाद से इतनी सफाई से कैसे अलग किए ले रहे हैं. स्टूडेंट्स इसका भी जवाब देते हैं.
वो बताते हैं कि AMU एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. जिन्ना की फोटो यहां अब से दसियों साल पहले लगाई गई थी. ज़ाहिर है आज के स्टूडेंट्स का जिन्ना की फोटो लगाने से कोई लेना-देना नहीं है. उनके मुताबिक एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी को अगर लिखित में फोटो हटाने का आदेश दे दिया जाएगा, तो फोटो हटा दी जाएगी.
लेकिन जैसा हमने बताया, स्टूडेंट्स की नाराज़गी की सबसे बड़ी वजह यही है कि उन्हें बिना वजह पीटा क्यों गया.
4 मई की सुबह जब हमारे रिपोर्टर निखिल AMU पहुंचे, तो वो बड़ी मुश्किल से AMU में दाखिल हो पाए. हालांकि, इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ, क्योंकि कोई भी स्टूडेंट किसी एक मीडिया हाउस से टुकड़ों में बात नहीं करना चाहता था.
स्टूडेंट्स ने साफ कर दिया कि उनकी तरफ से जो भी कहा जाएगा, वो यूनियन के मार्फत कहा जाएगा. कैंपस के अंदर लगे माइक से कहा जाएगा. और सारे मीडिया हाउसेस से एक साथ कहा जाएगा.
सुबह जब कुछ मीडिया हाउसेस कैंपस के अंदर गए, तो उन्हें AMU के स्टूडेंट्स घेरे हुए थे. कुछेक मीडिया हाउस से आए रिपोर्ट्स को स्टूडेंट्स ने बाहर भी कर दिया.
शुक्रवार को दोपहर की नमाज़ होने के बाद कैंपस में एक जगह स्टूडेंट्स जमा होने शुरू हुए. नारेबाजी शुरू हुई. स्टूडेंट्स हिंदू युवा वाहिनी, RAF और पुलिस पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पीटा गया.
स्टूडेंट्स हर किसी को शक की निगाह से देख रहे हैं. न उन्हें कैंपस से बाहर वालों पर भरोसा है और न पुलिस वालों पर. ऐसे में वो खुलकर किसी के सामने अपनी बात भी नहीं रख रहे हैं. हां, कैमरा और माइक देखकर वो थोड़ा रिलैक्स होते हैं और कॉपरेट करते हैं.
दोपहर में स्टूडेंट्स तिरंगे के साथ प्रदर्शन कर रहे थे. ये देशभक्ति दिखाने का एक नए किस्म का पैमाना है, जो पिछले कुछ बरसों में पुष्ट हुआ है.
उस अतिथिगृह के सामने ढेर सारे लोग जमा हो रखे हैं, जहां 2 मई को पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी रुकने वाले थे. उनके सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित किया जाना था, लेकिन इस विवाद की वजह से कोई आयोजन नहीं हो पाया.
AMU के पूर्व स्टूडेंट्स पानी वगैरह का इंतेज़ाम देख रहे हैं.
स्टूडेंट्स की तरफ से कहा गया कि वो शाम को साढ़े पांच बजे के बाद सभी मीडिया हाउसेस के साथ एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे.
इस घोषणा के कुछ देर बाद यूनिवर्सिटी कैंपस के गेट के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला लाठियों से पीटा और जलाया गया, जिसकी तस्वीर आपके सामने है.
अभी के लिए इतना ही. अलीगढ़ की आगे की रिपोर्ट हम आपको अपने साथी निखिल की रिपोर्ट के मार्फत बताएंगे.
Current situation of Aligarh Muslim University students protest amid Jinnah row in AMU