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मज़िल

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मैं अभी रुका हूँ थोड़ा थमा हूँ पर हारा नहीं हूँ नज़र अभी भी मुकाम पर है पैरो के छालो को देखा नहीं हूँ पीठ पर कई खंजर लहू बहा रहे है पर आखों से आंसू नहीं छलका हूँ विचारो की कश्मकश में उलझा है मन पर आस को छोड़ा नहीं हूँ निष्प्राण सा है तन पर दिल क

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