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मेरा शहर ( अंतिम क़िश्त )

22 अप्रैल 2022

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मेरा शहर   ( कहानी अंतिम क़िश्त )

अब मुकुंद थापर आबकारी मंत्री मोहन पाल की हर पब्लिक मिटिंग में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने लगा । और मोहन पाल जी के छोटी छोटी सी बातों को नोट करने लगा। वह पब्लिक मिटिंग में मोहन पाल की बातें भी ध्यान से सुनता था।
इस बीच राधा और मोहन पाल के बीच पकने वाले रिश्तों की बात आम हो गई। समय के साथ मोहन पाल को पार्टी पर दबाव पड़ने के कारण त्याग पत्र देना पड़ा। और उनकी जगह संजय पाटिल को आबकारी मंत्री बना दिया गया । और जब संजय पटिल जी आबकारी मंत्री बने उनका एक रिश्तेदार देव पाटिल शराब तस्करी, ड्रग्स तरस्करी और हवाला के कारोबार में आ गया । उसे आबकारी विभाग से भी पर्दे के पीछे से मदद मिलने लगी । जिसके कारण मुकुंद थापर गुट को अपने कामों में कठिनाई महसूस होने लगी । तब मुकुंद थापर गुट ने देव पाटिल गुट से लड़ने रणनीति बनाने लगा और आगे की तैयारी करने लगा । मुकुंद थापर गुट और देव पाटिल गुट जब एक दूसरे के विरुद्ध काम करने लगे तो दोनों गुट के माल पकड़ाने लगे और दोनों गुट भारी नुकसान झेलने को मजबूर हो गये । जब दोनों गुट अपने अपने नुकसान से परेशान हो गये तो मुकुंद थापर और देव पाटिल ने दुश्मनी और आपसी प्रतियोगिता की भावना को कम करने मीटिंग किया । मीटिंग में यह निर्णय लिया गया कि नवी बंबई में देव पाटिल गुट काम करेगा और पुरानी बंबई में मुकुंद थापर गुट काम करेगा । अब दोनों गुट आपस में मिलकर और राजी ख़ुशी काम करने लगे । 

इस बीच मोहन पाल इन दोनों गुटों के विरुद्ध आन्दोलन करने लगा । तब मुकुंद थापर , मोहन पाल को निपटाने का मौक़ा ढूंढने लगा । और देव पाटिल भी मोहन पाल को मज़ा चखाने के बारे में प्लानिंग करने लगा ।
 । उधर सीबीआई एस पी कृष्णा कोहली को भी भनक लगी की शराब माफ़िया और हवाला माफ़िया मोहन पर हमला करने वालें हैं तो वे मोहन की सुरक्षा की सार्थक तैयारी में जुट गये । कृष्णा कोहली को यह एहसास था कि भले ही मोहन पाल आज मंत्री नहीं है पर वह एक महत्वपूर्ण पार्टी का एक महत्वपूर्ण सदस्य है । और आज उसी पार्टी की यहां सरकार है । उसे अभी कुछ हो गया तो बंबई में बवाल मच जायेगा।        
दस दिन गुज़र गये पर मुकुंद गुट को मोहन पाल पर हमला करने का कोई मौक़ा नहीं मिला । 11वें दिन उन्हें पता चला कि मोहन व उसकी पार्टी के लोग् दादर स्थित पार्क में बंबई महापालिका के विरुद्ध किसी मुद्दे पर एक जंगी प्रदर्शनी करने जा रहे हैं , तो मुकुंद अपने साथियों के साथ दादर पहुंच गया और मंच के सामने ही अपने सारे साथियों को इधर उधर व्यवस्थित कर दिया व ख़ुद भी मंच के सामने ही भीड़ के बीच बैठ गया । अचानक ही उसने जब दांयी ओर नज़र फिरायी तो वहां से लगभग 100 मिटर दूर उसे देव पाटिल अपने 4 साथियों के साथ खड़ा नज़र आया । 

वास्तव में देवपाटिल भी आज मोहन पाल को निपटाने ही आया था ।  उधर मोहन पाल का ड्रग विरोधी अभियान ज़ोर पकड़ता जा रहा था । आधे घंटे के अंदर मोहन पाल अपने साथियों के साथ मंच पर था । उसका उद्बोधन प्रारंभ हो चुका था । वह ड्रग्स व हवाला के धंधे का काला चिट्ठा जनता के सामने बहुत ही प्रभावी तरीके से रख रहा था । मोहन पाल के अनुसार अगर ड्र्ग्स के व्यापार पर अभी लगाम नहीं लगाया गया तो बंबई के आधे नवजवान भविष्य में नवजवान कहलाने के लायक नहीं रहेंगे । वहीं हवाला के काले धंधे पर रोक नहीं लगी तो देश की इकानामी गर्त पर चली जायेगी फिर उससे निज़ात पाने बरसों लगेगा । यह सब बोलते बोलते अचानक मोहन पाल के मुंख से यह बात निकली कि कुछ सालों पूर्व छतीसगढ के बिलासपुर शहर में भी ड्रग्स के रैकैट्स तैयार हो गये थे । वहां के बहुत सारे जवान बच्चे ड्र्गस के ज़द में आ गये थे । वहां सरकार भी शायद ड्र्ग्स रैकेट्स को तोड़ने कुछ नहीं कर रही थी । ऐसे में हमारे संगठन से जुड़े वहां के लोगों ने हमारी सलाह पर वहां एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जिससे  पूरा ड्र्ग्स रैकेट टूटा । साथ ही उन्हें संरक्षण देने वाली सरकार भी गई । आज की तारीख में बिलासपुर शहर पूरी तरह से ड्र्ग्स मुक्त है और बिलासपुर आर्थिक सफ़लता के नये नये अद्ध्याय लिख रहा है ।

उधर जब मुकुंद थापर जी ने सुना कि मोहन पाल जी ने तीन तीन बार बिलासपुर का उल्लेख किया तो उसका माथा ठनका  । वह सोचने लगा कि आखिर मोहन पाल जी का बिलासपुर से क्या संबंध हो सकता है ? क्या उनका संबंध वहां से सिर्फ़ राजनैतिक है या कुछ और ?  उसे अपने मातृ भूमि की याद आने लगी । बिलासपुर की सर ज़मीं को नमन करते हुए लगने लगा कि कहीं मोहन जी मेरे बचपन का दोस्त मोहन तो नहीं है।  फिर उसका दिमाग कहने लगा अगर ये मेरा बचपन का दोस्त मोहन है तो अब अपने नाम के आगे पाल क्यूं लिखता है ? तब उसे बचाने के लिए मुकुंद ने अपने साथियों को एक्त्रित करके उन्हें समझाया कि हमारे आज का प्लान कैन्सिल है ।
 अब हमें मोहन जी को बचाने का काम करना है । ऐसा हम क्यूं करने जा रहे हैं , इसके बारे में विस्तार से आप लोगों को बाद में बताऊंगा । इतना कहते हुए वह अपने साथियों को लेकर देव पाटिल की ओर दौड़ा ताकि पाटिल के हमले को रोका जा सके । उधर कृष्णा कोहली उर्फ़ युनूस किसी भी हमले को नाकाम करने के लिए मंच के ही आसपास अपने साथियों के साथ खड़ा था । 
अब तक देव पाटिल अपनी ज़ेब से पिस्तौल निकालकर मोहन पाल को निशाना बनाकर घोड़ा दबाने ही वाला था कि उसे मुकुंद का ज़ोरदार धक्का दिया । लेकिन देव पाटिल की पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी पर निशाना चूकने के कारण गोली मोहन के बदले उसके बाजू में खड़े कृष्णा के सर पर लगी  । हालाकि क्रिष्णा हेलमेट पहने हुए थे पर गोली हेलमेट को भेदते हुए उसके सर के अंदर घुस गई । गोली के लगते ही कृष्णा कोहली बेहोश हो गया । गोली के चलते ही वहां अफ़रा तफ़री मच गई । लेकि्न पोलिस वालों ने मुकुंद व उसके आदमियों की सहायता से देव पाटिल को पकड़ लिया । इस बीच कुछ पोलिस वाले अपने अधिकारी कृष्णा जी को तुरंत पास ही स्थित एक बड़े हास्पिटल ले गये । जहां सीटी स्केन के माद्ध्यम से पता लगा कि गोली उनके टेम्पोरल बोन में जाकर फ़ंसी है  । अत: ब्रेन मटेरियल को कोई नुकसान नहीं हुआ है । इमरजेन्सी में आपरेशन करके कोहली साहब के सिर में फ़ंसी गोली निकाल ली गई । 3 दिनों बाद कोहली साहब पूरी तरह स्वस्थ्य हो गये तो उन्हें हास्पिटल से छुट्टी दे दी गई । जैसे ही कृष्ना की बेहोशी टूटी तो उनके मुंख से सिर्फ़ एक ही  शब्द निकल रहा था वह शब्द था “ बिलासपुर “ “बिलासपुर” । जब ये बात मोहन पाल और मुकुंद थापर  को पता चली तो वे दोनों कृष्णा जी के पास पहुंचे और उसे सान्तवना देते हुए उनसे पूछने लगे कि आप बिलासपुर शहर का नाम क्यूं बार बार उल्लेखित कर रहे थे । जवाब सुनकर वे दोनों सन्न रह गये । कृषना ने कहा मैं तो जन्मजात बिलास्पुरिया हूं । । मुझे खुद आश्चर्य हो रहा है कि मैं यहां बंबई में क्या कर रहा हूं ? और कब से यहां हूं मुझे समझ नहीं आ रहा है ? तब मोहन ने कहा कि कृष्णा तुम्हें सिर पर गोली लगी है । तुम  शायद  सिर पर लगी चोट के कारण तुम उल्टी सीधी बातें कर रहे हो । जवाब में कृषणा ने कहा कि मैं क्रिष्णा नहीं हूं मेरा नाम युनूस है  । ये सुनकर मोहन हक्का बक्का रह गया । इसके बाद मोहन ने लगभग रोते हुए पूछा कि क्या तुम युनूस बिलासपुरिया हो।
युनूस – हां मैं युनूस हूं , मूलत: बिलासपुर का निवासी । 
मोहन – भाई युनूस मुझे तुमने पहचाना या नहीं ? 
युनूस—वैसे तो तुम्हारी आवाज़ तो पहले कहीं न कहीं सुनी लगती है । पर मुझे याद नहीं आ रहा है ।
मोहन – मैं तुम्हारे बचपन का दोस्त मोहन यादव हूं । 
मोहन की इस बात को जैसे ही पास में खड़े हुए मुकुंद ने सुनी तो उसकी आंखें  छलक उठीं और उसने सुबक सुबक कर रोते हुए उन दोनों से कहा । दोस्तों मुझे भी पहचानों मैं तुम दोनों का जिगरी दोस्त मुकुंद कुर्मी हूं । 25 साल पूर्व हम तीनों बिलासपुर से बंबई अपनी गल्तियों के कारण पहुंचे थे । और अगले दिन हम एक बाज़ार में भीड़ के कारण बिछड़ गये । आज 25 वर्ष बाद हमारा पुनर्मिलन हुआ है । लोग ठीक ही कहते हैं कि भगवान के घर में देर है पर अंधेर नहीं । युनूस भाई तीन चार दिनों में तुम जब पूरी तरह स्वस्थ्य हो जा्वोगे। फिर हम किसी एक के घर चौबीसों घंटे रहकर एक दूसरे की कहानी सुनेंगे । आखिर इतने लंबे समय तक हम कहां थे और क्या कर रहे थे ?  इतने लंबे समय में हमने क्या क्या कठिनाइयां झेलीं और कैसे अपने हौसले को बनाये हुए खुद को बंबई में रहने लायक बनाया ?  फिर हम तीनों बंबई हावड़ा मेल के द्वारा अपने शहर बिलासपुर जायेंगे । और हम ये सफ़र जनरल बोगी में बैठ कर करेंगे ।
बिलासपुर में अपने लोगों से मिलकर और एक सप्ताह रहकर वापस बंबई आ जायेंगे । अब तो हम तीनों का दाना पानी बंबई में ही लिखा है ।अत: हमें बाक़ी ज़िन्दगी बंबई में ही बितानी पड़ेगी । पर अब हम एक काम जरूर करेंगे कि हम तीनों अपने नाम के आगे बिलासपुर का उल्लेख जरूर करेंगे । मैं अब मुकुंद बिलासपुरिया लिखूंगा , मोहन को मोहन बिलासपुरिया लिखना होगा और युनूस तुम युनूस बिलासपुरिया लिखना । अगर यही काम हम बंबई में पैर रखते ही कर लेते यानी अपने अपने नामों के आगे बिलासपुर का उल्लेख करते तो हमारी जुदाई इतनी लंबी नहीं होती। मुकुंद ने और अपनी भावनाओं को उजागर इस तरह किया कि वास्तव में किसी भी इंसान को अपनी ज़मीन को कभी भी न भूलना चाहिए । अपनी धरती की कोई निशानी अपने साथ ज़रूर रखनी चाहिए । अगर शख़्स अपनी धरती या अपनी ज़मीन अपनी मातृभूमि को भुला बैठे तो उसका वही हश्र होता है जो एक नदी का। जब वह नदी समंदर में जाकर मिल जाती है तो वह अपना नाम , अपना अस्तित्व और अपनी पहचान खो बैठती है ।

( समाप्त)
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