मेरा शहर ( कहानी दूसरी क़िश्त)
( अब तक -यह देख मोहन डर जाता है । उसे लगता है कि एक अन्जान शहर में अन्जान सोसायटी में एक अन्जान बुजुर्ग के घर में बैठा हूं। और वह बुजुर्ग बेहोश है । ऐसे में मैं क्या करूं?)
उसे कुछ नही सूझता तो वह अपने जूते निकालकर उस बुजुर्ग की नाक के पास 5 मिन्टों के लिए रखता है पर कुछ देर के इंतज़ार के बाद कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता तो वह जल्दी से नीचे जाकर वहां बैठे गार्ड को सारी बातें बताता है । गार्ड की सलाह से मोहन उस बुजुर्ग को पास के हास्पिटल में ले जाने हेतु एक टेक्सी रुकवा लेता है । फिर वे उपर आकर उस बेहोश बुजुर्ग को नीचे ले जाकर टेक्सी के अंदर पिछली सीट पर लिटा देते हैं । थोड़ी दूर टेक्सी के जाने के बाद जब टेक्सी वाला मोहन से पूछता है कि किस हास्पिटल में जाना है तो मोहन कहता है । यहां के लिए बिल्कुल नया हूं । आप पास स्थित जो भी अच्छा अस्पतालल है वहां ले चलें । मोहन उस टेक्सी वाले से यह भी कहता है कि आप अपने बिल की फ़िक्र न करना अभी मेरे पास पैसे नहीं है पर यह बुजुर्ग जब ठीक हो जायेंगे तब आपका पैसा आपको प्राप्त हो जायेगा । जवाब में टेक्सी वाला कुछ नहीं कहता और उस बुजुर्ग को परेल स्थित सरकारी मेडिकल कालेज ले जाता है । वहां दस मिन्टों में उस बुजुर्ग को भर्ती करके उनका इलाज प्रारंभ कर दिया जाता है । उस बुजुर्ग जिनका नाम चमनलाल था उन्हें आपात चिकित्सा केन्द्र से न्यूरो वार्ड में शिफ़्ट कर दिया जाता है। वह चुपचाप वरान्डे में बैठे सोचने लगा कि यह कैसी स्थिति है कि एक अन्जान शहर में एक अन्जान व्यक्ति के लिए मुझे अस्पताल में बैठना पड़ रहा है । इतनी सेवा तो मैंने कभी अपने परिवार के सदस्यों का नहीं किया है । फिर ज़ेब में ज्यादा पैसा भी नहीं है । अगर कुछ दवा लाना पड़ा तो कैसे करूंगा । इतने में वार्ड से सिस्टर की आवाज़ आई कि चमनलाल जी के साथ कौन है तो मोहन सिस्टर के पास जाकर कहता है, कहिए सिस्टर क्या बात है ? मैं उनके साथ हूं । । तब उस नर्स ने डांटते हुए कहा कि तुम लोग कैसे हो ज़रा भी ध्यान नहीं रखते । इनकी ज़ेब में पांच हज़ार रुपिए रखे थे और तुमने उसे निकाला भी नहीं बाद में हम लोगों को दोष देते कि हम लोगों ने पैसा गायब कर दिया । मोहन ने माफ़ी मांगते हुए पैसा अपने पास रख लिया । हाथ में पैसा आने से उसके मन का तनाव कुछ कम हुआ । चमनलाल जी को अभी तक होश नहीं आया था । लेकिन डाक्टर ने बताया था कि इनकी ठीक होने की गुन्जाइश बहुत ज्यादा है। तीसरे दि्न सुबह चमनलाल जी को होश आ गया । उस समय मोहन उनके बाजू में ही स्टूल लेकर बैठा था । तीन दिन और बीते और चमनलाल पूरी तरह से स्वस्थ्य हो गये । तो उन्हें हास्पिटल से डिसचार्ज कर दिया गया । मोहन उन्हें लेकर उनके घर आ गया । घर आने के बाद चमनलाल जी ने मोहन से कहा कि मोहन मैं यहां पूरी तरह से अकेला रहता हूं । मेरा लड़का अमेरिका में ही बस गया है । अब उसे शायद मुझसे कोई मतलब नहीं है । मेरी उम्र 80 वर्ष हो गई है । मैं चाहता हूं कि तुम मेरी देखभाल के लिए मेरे साथ यहीं रहो । उचित तन्खाव्ह के साथ उचित इनाम भी दूंगा । तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझको एक माकूल सहारा मिल जाएगा ।
उधर क्राफ़ट मार्केट में भगदड़ होने के पूर्व मुकुंद को अहसास हो गया था कि कुछ तो भयंकर गड़बड़ होने वाली है । अत: वह भीड़ से निकल कर पीछे की तरफ़ खड़ा हो गया था । लेकिन वहां भी उसे समस्या का सामना करना पड़ा । दो व्यक्तिओं ने उसे घेर लिया और कहने लगे कि तुमने हमारी ज़ेब में हाथ डाला था । तुम एक स्थापित पाकेट मार हो । चलो तुम्हें थाने ले चलते हैं और आगे की कार्यवाही पोलिस वाले करेंगे । फिर उन दोनों ने मुकुंद को पकड़कर पास स्थित कोतवाली ले गये । वहां मुकुंद के उपर यथोचित धाराएं लगाकर उसे लाक अप में डाल दिया गया । वह रोता रहा चिल्लाता रहा कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है । अगले दिन उसे अदलात में पेश किया गया और उसे अदालत के आदेश से बाल सुधार ग्रिह भेज दिया गया । 4 महीनों बाद उसे वहां से यह कह कर छोड़ा गया कि अब कभी भी कोई अपराध नहीं करोगे ।
बाल सुधार ग्रिह में उसे एक व्यक्ति अक्सर आकर मिलता था । उसका नाम बी.थापर था । वह वहां कई बच्चों से मिलता था और वह हर बार सभी बच्चों के लिए कुछ न कुछ गिफ़्ट लाता था । मुकुंद उससे बहुत प्रभावित था । थापर नाम का वह शख़्स हर बार मुकुंद से अकेले ले जाकर बातें करता था और मुकुंद को कहता था कि कुछ महीने तुम्हारी सज़ा के जल्द गुज़र जायेंगे । उसके बाद अगर तुम्हारे पास कोई काम नहीं है और बंबई में रहने की जगह नहीं है तो मेरे पास चले आना । मैं तुम्हें काम भी दूंगा । जिससे तुम बंबई में बड़े ही आराम से अपनी ज़िन्दगी जी पाओगे । यह कहते हुए थापर ने मुकुंद को अपना कार्ड दिया जिसमें उनका पता के साथ साथ टेलीफ़ोन नंबर भी दिया गया था । 4 महीनों के बाद जब मुकुंद बाल सुधार गृह से रिहा हुआ तो वह देवनार स्थित थापर जी के घर पहुंच गया । वहां उसे काम के अलावा रहने के लिए कमरा भी मिल गया । थापर जी के घर में कम से कम 10 व्यक्ति और रहते थे। जिन्हें अलग अलग कार्यों की ज़िम्मेदारी थी । थापर जी ने मुकुंद को सिर्फ़ एक काम दिया कि उसे दो दिनों के अंतराल में एक बैग लेकर बोरिवली स्टेशन जाना था और वहां एक अन्जान व्यक्ति को देकर आना था । बाक़ी उस अन्जान व्यक्ति को पहचानने का तरीका भी हर बार बदलते रहता था । इस काम के एवज में उसे थापर के घर में रहने , भोजन की सुविधा साथ ही 5 हज़ार रुपिए भी हर महीने मिलने वाले थे । मुकुंद अब थापर जी के द्वारा दिए काम में व्यस्त हो गया ।
उधर जब क्राफ़ट मार्केट में धक्का मुक्की हुई तो युनूस ज़मीन पर गिर गया और कई पैरों के नीचे आ गया । जिससे वह बेहोश हो गया । जब उसे होश आया तो अपने आप को एक हास्पिटल में पाया । युनूस को अपने बिस्तर के पास रखे स्टूल पर एक आदमी को बैठे देखा । उस आदमी की उम्र लगभग 40 साल रही होगी । युनुस को होश में देख उस सज्जन ने बड़े ही प्यार से कहा । कैसे हो बेटे ? युनूस ने जवाब में कहा शरीर में दर्द बहुत है। वैसे मैं ठीक हूं । तब उस आदमी ने अपना परिचय दिया कि मेरा नाम उदय कोहली है । मैं गोवा स्टेट के पोलिस विभाग में पदस्त हूं । मेरी पोस्टिंग अभी पन्जिम में ही है । दुर्घटना वाले दिन मैं तुम्हारे बगल में ही खड़ा था । जब तुम नीचे गिरे और बेहोश हो गये तो मैंने ही अपने दो साथियों के साथ तुम्हें वहां से निकाला था । फिर तुम्हारी स्थिति देखकर तुम्हें अस्पताल में भर्ती करवा दिया । अच्छा अब बताओ तुम्हारा नाम क्या है ? कहां के रहने वाले हो ? और तुम्हारे माता पिता का नाम क्या है ? युनूस जब इन प्रश्नों का जवाब देना चाहा तो उसे लगा कि मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा कि मेरा नाम क्या है ? और मैं कहां का रहने वाला हूं । उसकी ये हालत देख उदय कोहली जी ने कहा कि अभी तुम अपने दिमाग पर ज़ोर मत डालो। कुछ दिनों में आपको सब कुछ याद आ जायेगा । चाहो तो हास्पितल से छुट्टी के बाद तुम मेरे साथ रह सकते हो । मैं घर में बिल्कुल अकेला रहता हुं।मैंने विवाह नहीं किया है। पांच दिनों बाद युनूस की छ्ट्टी हो गई । वह उदय जी के साथ पन्जिम चला गया ।
( क्रमशः)