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मेरा शहर ( तीसरी क़िश्त)

21 अप्रैल 2022

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मेरा शहर  ( कहानी तीसरी किश्त)

अब तक --पांच दिनों बाद युनूस की छ्ट्टी हो गई । वह उदय जी के साथ पन्जिम चला गया ।( इससे आगे )

पन्जिम में  घर की देखभाल करना और  खाना पकाना उसके ज़िम्मे था । उदय कोहली जी ने उसे एक सरकारी स्कूल में 9 वीं कक्षा में भर्ती करवा दिया ।  उसे एन नया नाम दे दिया क्रिष्णा कोहली । 

मोहन लगभग 10 दिनों बाद फ़ुरसत पाया तो शाम 7 बजे वीटी स्टेशन गया और वहा क्लाक रूम के पास 10 बजे तक खड़ा होकर मुकुंद और युनूस का इंतज़ार करने लगा । पर मुकुंद और युनूस को न आना था , वे नहीं आये । मोहन बहुत निराश हो गया कि अपने दोस्तों से वह जुदा तो हो गया है पर साथ ही अब उनसे दोबारा मिलने की कोई गुन्जाइश भी नज़र नहीं आ रही है । मोहन की उम्र उस समय मुश्क़िल से  14  साल की थी । उसके मन में कई बार वापस बिलासपुर जाने की चाह्त हिलोरें मारती थी । इस बीच चमनलाल जी ने सोसायटी वालों को बता दिये थे कि मोहन मेरा भतीजा है । जो अब तक पूना में रहता था । पर एक हादसे में उसके मां बाप दोनों गुज़र गये तो उसे मैंने अपने पास बुला लिया । अब यह मेरे पास ही यहीं रहेगा। फिर चमनलाल जी ने मोहन का दाखिला परेल स्थित एक कान्वेन्ट स्कूल में आगे की पढाइ के लिए भर्ती करवा दिया।
चमनलाल जी के बैंक खातों में लगभग 10 करोड़ रुपिए ज़मा थे। वही परेल में ही उसकी एक 20000 स्क़्वे फ़ीट की ज़मीन थी । जिसमें उनका एक नट बोल्ट बनाने का कारखाना था । उस कारखाने को किराये पर दे दिया था । जिससे भी उन्हें अच्छा खासा किराया आता था । समय बीतता गया देखते ही देखते 3 साल बीत गये । अब मोहन का मन बंबई में लगने लगा था पर साथ ही बीच बीच में उसके मन में बिलासपुर वापस जाने की भी इच्छा भी बलवति होती थी ।  लेकिन इस बीच एक विशेष घटना हो गई । एक रात चमनलाल जी को हार्ट अटेक आया और हास्पिटल जाते जाते उनकी मौत हो गई । उनकी अंत्येष्टी पूरे रीति रिवाज़ से मोहन ने किया। चमनलाल जी के जाने के 4 दिनों के बाद चमनलाल जी  के वक़ील घर आये और पड़ोसियों के बीच मोहन को बिठा कर चमनलाल जी की वसीयत को पढकर सुनाया । जिसके अनुसार मुकुंदलाल जी ने अपनी संपत्ति का 90 प्रतिशत हिस्सा मोहन को देने का लिखा है और 10 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका में बसे अपने लड़के को दिया था । वसीयत में यह कंडिका भी लिखा था कि मोहन को ये दौलत तभी हासिल होगी जब वह परेल में किराये में दी गई फ़ेक्टरी को खुद कम से कम 5 साल चलाए ।
 । वह चाहता था कि पहले  बारवीं पास हो जावे। उसके बाद ही वह धंधे पानी में अपने आपको जोड़ेगा। अत: वह एक साल बाद ही फ़ेक्टरी में हाथ डालने का मन बना लिया  । एक साल तक वह अपनी पढाई पे ध्यान रखना प्रारंभ किया ।  इस बीच वह कुछ दिनों के लिए बिलासपुर भी गया । वहां जाने से उसे पता चला कि उसके माता पिता एक हादसे में काल कलवित हो गये हैं। अब बिलासपुर में उसका एक भी रिश्तेदार नहीं था । अत: वह उल्टे पांव बंबई आ गया । एक साल बाद बारवीं पास करके वह अपनी फ़ेक्ट्री को चलाने की तैयारी करने लगा । इसके लिए वह 2 महीने तक एक पहचान वाले की फ़ेक्टरी में जाने लगा ताकि काम को और उसके मैनेजमेन्ट को समझ सके ।  उसके बाद वह अपनी फ़ेक्टरी को चलाने में कोई तकलीफ़ नहीं हुई । फ़ेकटरी चलाने के साथ साथ वह लोहे की ट्रेडिंग में भी खुद को जोड़ लिया । 2  वर्षों में वह लोहे के धंधे का बड़ा खिलाड़ी बन गया । अब वह अपने दोनों धंधों से अथाह धन कमाने लगा । इसके बाद वह सामाजिक कामों में भी शिद्दत से काम करने लगा । लोग उसको पहचानने लगे और उसकी इज़्ज़त भी करने लगे । इसके बाद  वह एक राजनैतिक पार्टी का सदस्य बन गया और पार्षद के चुनाव में भाग लेकर अपने क्षेत्र का पार्ष्द बन गया । धीरे धीरे उसका राजनैतिक कद बढता गया और उसे उस पार्टी का अद्ध्यक्ष बना दिया गया । अब सारी बंबई में उसकी एक पहचान थी । इस बीच वह एक लड़की के संपर्क में आया । जिसका नाम था राधा । वह पास ही स्थित कालेज में मैथ्स की विद्ध्यार्थी थी । उसके पिता का कपड़ों का बड़ा व्यवसाय था । 

उधर मुकुंद वर्मा अजय थापर के साथ काम करते करते एक सिद्ध हस्त स्मगलर बन चुका था । कुछ विवाद होने के बाद वह अजय थापर से अलग होकर अपना एक अलग गुट बना लिया था । मुकुंद का गुट सिर्फ़ सोने की तस्करी में ही शामिल था । मुकुंद भले ही अजय थापर से जुदा हो चुका था पर आज भी उनकी बेहद इज़्ज़त करता था । इसकी वज़ह थी कि अजय थापर ने उसे उस वक़्त सहारा दिया जब वह दर दर की ठोकरें खा रहा था और भूख से मर रहा था । मुकुंद ने कभी भी अजय थापर जी के नेटवर्क में कोई तोड़फ़ोड़ नहीं की बल्कि उसने अपना एक नया नेटवर्क बनाया था । उधर बिलासपुर में मुकुंद के सिर्फ़ पिता और एक बहन थी । लगता था कि उन्हें मुकुंद से कोई मतलब न था । मुकुंद के जीजाजी विकास बहुत ही कमीना और जालिम था । उन्होंने पिताजी के नाम की 20 एक्ड़ की ज़मीन को अपने नाम पे लिखवा लिया था। साथ ही जीजाजी ने मुकुंद को मरा घोषित करवा दिया था । उन्होंने मुकुंद के नाम से एक डेथ सर्टिफ़िकेट भी डाक्टरों से मिलकर बनवा लिया था । 

समय गुज़रता गया । युनूस को गोवा आये 2 वर्ष से भी ज्यादा हो चुका है । वह गोवा में इंस्पेक्टर कोहली के साथ उनका पुत्र बनकर रहने लगा था । उसकी याद्दाश्त जा चुकी थी । उसे अपने बीते समय का कुछ भी याद नहीं था । यहां तक उसे अपना पुराना नाम भी याद नहीं था । गोवा में उदय कोहली साहब ने उसे अपने बेटे जैसे रखा था । उसे एक नया नाम दिया था  क्रिष्णा कोहली । साथ ही क्रिष्णा को उदय साहब ने कालेज में भर्ती करवा दिया था। युनूस पढाई में बहुत तेज़ था । समय के साथ वह बीएससी प्रथम श्रेणी में पासकर यूपीएससी की परीक्षा दिलाकर आइपीएस के लिए सलेक्ट हो गया था । पर इस बीच उनके संरक्षक उदय कोहली साहब का निधन हो चुका था । फिर विभिन्न ट्रेनिंग पूरी करके एसपी बन चुका था । उसकी पोस्टिंग सीबीआई में कर दी गई थी । उसे कैडर एलाट किया गया था महाराष्ट्र और वर्तमान में उसकी पोस्टिंग बंबई में थी ।  जहां उसकी ज़िम्मेदारी नेताओं के भ्र्ष्टाचार पर नज़र रखना और बड़े तस्करों को कानून के दायरे में लाना था ।

उधर मोहन राजनीति में उतरोत्तर सफ़लता की सीढियां लांघते हुए महाराष्ट्र के आबकारी व वाणिज्य मंत्री बन गया । उसने सदन में अपने पहले ही उदबोधन में सदन को भरोसा दिलाया था कि अब बहुत जल्द ही ड्रग माफ़िया और लिकर माफ़िया के नेटवर्क को ध्वस्त किया जायेगा । उधर मुकुंद वर्मा जो अब मुकुंद थापर के नाम से जाना जाने लगा था अपने तस्करी के काम में बंबई का सबसे बड़ा नाम बन चुका था । पर उसके विरुद्ध कोई ठोस सबूत और गवाह न होने के कारण वह कानून के बंधनों से मुक्त था । पर अब बंबई के सीबीआई के नये एसपी कृष्णाकोहली उर्फ़ युनूस खान बंबई के सारे बड़े तस्करों और ड्र्ग माफ़िया के पीछे हाथ धोकर पड़ गये थे ।  जिसके कारण तरस्करों के गुटों में खलबली मच गई और कई छोटे बड़े समूह बंबई छोड़कर दूसरे प्रान्त की ओर भागने लगे । इसी के तहत एक बड़ी कार्यवाही में मुकुंद थापर का 50 करोड़ का माल पोलिस के हाथों पकड़ा गया । इतने बड़े मूल्य का सामान पकड़ाने के कारण मुकुंद थापर आर्थिक समस्या से घिर गया । तब उसने कसम खायी कि वह इसका बदला आबकारी मंत्री मोहन पाल और सीबीआई के आबकारी सेल के मुखिया कृष्णा कोहली से लिया जायेगा ।  उधर जब एलआईबी के माद्ध्यम से पोलिस को मालूम हुआ कि मंत्री मोहन पाल पर मुकुंद थापर के आदमी हमला कर सकते हैं तो उनकी सुरक्षा बहुत ही मजबूत कर दी गई। ऐसी स्थिति में मुकुंद थापर ने मोहन पाल पर हमले के प्लान को पोस्ट्पोन्ड कर दिया । और समय का इंतज़ार करने लगा कि कब मोहन पाल की सुरक्षा में कमी आये तो अपने प्लान को अन्जाम तक पहुंचाया जाये । 
( क्रमशः)
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रचनाएँ
मेरा शहर ( कहानी प्रथम क़िश्त)
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तीन दोस्त जिनकी उम्र लगभग 13'-14 वर्ष की थी। परीक्षा के पास वे तीनों एक दिन ट्रेन में बैठकर डोंगरगढ माता के दर्शन के लिये जाते हैं । ट्रेन मेँ तीनों रायपुर के बाद सो जाते हैं और उनकी नींद खुलती है ट्रेन के नागपुर पहुंचने के बाद। वे तीनों घबरा कर सोचने लगते हैं कि आखिर अब हम क्या करें?
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