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मेरा शहर ( कहानी प्रथम क़िश्त)

19 अप्रैल 2022

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मेरा शहर ( कहानी  प्रथम क़िश्त )

मोहन यादव, मुकुंद वर्मा और युनूस पटेल तीनों छत्तीसगढ के एक शहर बिलासपुर के निवासी हैं । तीनों 
8 वीं के छात्र हैं । और तीनों के मद्ध्य गहरी दोस्ती है । ये तीनों बिना झिझक के एक दूसरे के घर कभी भी चला जाये करते थे । परिवार के अन्य सदस्यों से भी उनके ताल्लुक अच्छे थे। मोहन बेहद बुद्धिमान है। वहीं मुकुंद को विशेष परिस्थिति में इन्टुशन आते हैं , और अधिकान्श समय वे सच भी साबित होते हैं । युनूस की खासियत थी कि वह बड़ा ही हिम्मती था । किसी भी विषम स्थिति में वह डरता नहीं था । वह बिना डरे सीना तानके मुश्किल घड़ियों का डट कर सामना कर लेता था ।  

मार्च के अंत में तीनों की वार्षिक परीक्षा पूरी हो जाती है । तो तीनों बिलासपुर से डोंगरगढ देवी दर्शन के लिए जाने की योजना बनाते हैं । एक दिन सुबह वे हावड़ा-मुंबई मेल में बैठ जाते हैं । वे तीनों जनरल बोगी में बिना टिकिट लिए घुस जाते हैं और फिर उपर वाली बर्थ में जाकर सो जाते हैं । उनके सफ़र का समय लगभग 5 घंटे का था । अत: वे सोते वक़्त भी थोड़े बेफ़िक्र थे । तीनों इतनी गहरी नींद में चले जाते हैं कि उन्हें आभास ही नहीं होता कि कितना समय गुज़र गया है । उनमें से सबसे पहले नींद मोहन यादव की खुलती है । वह नीचे बैठे लोगों से पता लगाता है तो उसे मालूम होता है कि उनकी ट्रेन 10 मिनटों में नागपुर पहुंच जायेगी । यह सुनकर वह थोड़ा घबरा जाता है फिर मुकुंद और युनूस को उठा कर बताता है कि वे डोंगरगढ से बहुत आगे नागपुर पहुंच रहे हैं । ये सुनकर मुकुंद भी थोड़ा घबरा जाता है कि अब हम क्या करें ? तब युनूस कहता है कि इसमें घबराने की क्या बात है ? तीनों तो हम साथ साथ हैं । अब हमारे पास दो या तीन रस्ते हैं । पहला हम नागपुर में उतर कर वापस डोंगरगढ या बिलास्पुर जायें । दूसरा रस्ता है जिसके बारे में मेरा मन ज्यादा है कि हम इसी ट्रेन में बैठे रहें और बंबई चले जायें । वहां कुछ फ़िल्मों की शूटिंग देखें , फ़िल्म के कुछ हीरो हीरोइनों को देखें और और एक सप्ताह मुंबई दर्शन के बाद वापस अपने शहर बिलासपुर जायें । मेरे पास इतने पैसे हैं कि सात आठ दि्नों तक हमें खाने पीने की कोई तकलीफ़ नहीं होगी । जहां तक सोने व आराम करके की बात है तो हम रेल्वे स्टेशन में ही सोयेंगे । जवाब में मुकुंद और मोहन ने भी कहा कि हमारा भी मन था कि कभी बंबई के दर्शन करें । फिर उन दोनों ने बताया कि हमारे पास भी इतना पैसा है कि खाने पीने की समस्या नहीं आयेगी । पर हां इतना पैसा नहीं है कि ट्रेन की टिकिट खरीद सकें । वापसी में भी हमे बिना टिकिट के जनरल कंपार्ट्मेंट में ही सफ़र करना होगा । फिर मोहन ने कहा कि घर वालों को तो हमने कुछ नहीं बताया है । जवाब में युनूस ने कहा घर वालों से इतना डरते क्यूं हो ? जब वापस बिलासपुर जायेंगे तब ये बता देंगे कि हम लोग डोंगरगढ के लिए ट्रेन में बैठे थे लेकिन हम वहां उतर नहीं पाये तो नागपुर में हमें जीआरपी वालों ने पकड़ लिया । और हमें गिरफ़्तार कर लिया गया । सात दिन की सज़ा के बाद हमें छोड़ा गया तो वापस आये हैं । जेल में जाने के बाद हमारे पास कोई साधन नहीं था कि अपने अपने घर में खबर कर दें । युनूस का तर्क उन दोनों को ग्राह्य लगा तो वे तैयार हो गये और तीनों ने हाथ मिलाकर नि्र्णय लिया कि सात दिन बंबई घूम कर आया जाय । माया नगरी देखने की उन सबकी चाहत तो बहुत दिनों से थी पर अब तक कोई मौक़ा उन्हें मिला नहीं था । आज बमलेश्वरी देवी की कृपा से उन्हें बंबई जाने का मौका मिला है । मोहन और मुकुंद डर रहे थे कि हम लोग इतनी कम उम्र में कैसे बंबई की भीड़भाड़ में सुरक्षित रह पायेंगे । वे फिर ये मंत्रणा करने लगे कि वहां हमे कैसे रहना है और क्या क्या सावधानी बरतनी पड़ेगी ? युनूस ने कहा सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम वहां एक दूसरे से अलग न होने पायें । एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रहना है । दूसरी बात है कि धोखे से हम बिछड़ भी जायें तो हमें मुख़्य रेल्वे स्टेशन में वापस आकर वहां के माल घर के पास बैठ कर औरों का इंतज़ार करना है। मेरी जानकारी में वीटी स्टेशन ही वहां का मुख्य स्टेशन है । जिसके बारे में हमको कोई भी बंबईया गाइड कर देगा ।  
फिर युनूस के कहने से तीनों अपनी अपनी ज़ेब से पैसे निकालकर गिनने लगे ।मोहन के पास 125 ) 00 थे , मुकुंद के पास 125) 00 थे वहीं युनूस 200) रखा था । युनूस ने कहा कि हमारे पास 450 ) हैं अत: हर दिन का खर्च 50 ) से ज्यादा नहीं आयेगा  । बंबई में एक दो दिन गुज़ारेंगे तो हमें और कुछ पता चल सकता है कि वहां किस तरह से कम पैसे खर्च करके पेट भरा जा सकता है

ज़ेब कटना बड़े शहरों में बहुत सामान्य बात है । यहां छोटे शहरों से आने वाले लोगों की ज़ेबें अक्सर कटती है अगर वे असावधान रहते हैं तो । वास्तव में ज़ेब कतरों की नज़र बाहर से आये असावधान लोगों पर ही ज्यादा रहती है । बातें करते करते युनूस ने वहां से गुज़रते वेन्डर से तीन प्लेट पूड़ी सब्जी खरीद लिया । फिर तीनों पूड़ी सब्ज़ी खाकर सो गये । रात्रि भी वे उसी तरह पूड़ी सब्जी खाकर गुज़ारे फिर सो गये । अगली सुबह बंबई की धरती पर पैर रखने की ख़्वाइश में । ट्रेन जैसे ही वीटी स्टेशन में रुकी  युनूस ने मोहन और मुकुंद से कहा कि हम सबसे आखिरी में उतरेंगे । भीड़ में धक्का मुक्की खाते उतरने से कोई फ़ायदा नहीं । 10 मिन्टों में जब बाक़ी सवारी उतर गये तो वे तीनों उतरे । मुकुंद जब प्लेट्फ़ार्म मे उतर रहा था तो उसे पैरों के नीचे एक नोट पड़ा मिला । उठाकर देखा तो वह हज़ार रुपिए वाला नोट था । उसने मोहन और युनूस को बताया तो उन दोनों ने कहा कि अब तो जिसकी ज़ेब से यह गिरा है उसे तो ढूंढ नहीं सकते । अत: यह समझो भगवान ने हमारी मदद के लिए इस पैसे को किसी बहाने भेजा है । भविष्य में 10/15 सालों बाद जब हम पैसे वाले हो जायेंगे तो हज़ार रुपिए किसी यतीम खाने में दान करेंगे, ऐसी कसम खाते हैं । तीनों ने यह शपथ ली तब जाकर सबके चेहरे पर सुकून का साया नज़र आया । तीनों पहले वहां प्रथम क्लास वले रिटायरिंग रुम में चले गये और नहा धो कर तैयार होकर तीनों बाहर आ गये ।  प्रथम क्लास की रिटायरिंग रूम में घुसने के पूर्व वे वहां के कर्मचारी को 5 रुपिए दे दिए थे । फिर तीनों धीरे धीरे प्लेट फ़ार्म से बाहर आये। बाहर स्थित एक ठेले से पूरी सब्जी खाकर पेट पूजा किया । इसके बाद तीनों समय पास करने के लिए पूछते पूछते क्राफ़ट मार्केट पहुंच गये । पता नहीं वहां क्यूं आज इतनी ज्यादा भीड़ थी ।  युनूस के कहने से तीनों एक दूजे के हाथों को मजबूती से पकड़ लिए । थोड़ा आगे जब वे बढे तो अचानक उनके आगे भीड़ का ऐसा रेला आया कि तीनों का हाथ छूट गया । फिर तीनों भीड़ के दबाव के चलते अलग अलग रस्ते आगे बढने लगे । जब उनके सामने भीड़ कम हुई तो वे एक दूजे को ढूंढने लगे । लेकिन एक दूजे को ढूंढ नहीं पाए । अब उन तीनों के मन में अकेलेपन का डर सताने लगा । 

मोहन धक्के खाकर क्राफ़ट मार्केट के पूर्व दिशा की ओर बढने लगता है और धीरे धीरे वह भीड़ से बाहर आ जाता है । उसके सामने ही मुख़्य सड़क थी । वह फ़ुट्पाथ पर खड़े होकर सोचने लगा कि अब क्या करूं? इतने में मोहन की बगल में एक बुजुर्ग आकर खड़ा हो जाता है। उस बुजुर्ग को चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पड़ता था । बुजुर्ग मोहन के बाजू में खड़ा होकर सड़क पार करने की कोशिश करने लगा । लेकिन चार कदम आगे बढने के बाद  डर कर वे बारबार पीछे आ जाते थे । उनके डर और असफ़ल प्रयास को देखकर मोहन उस बुजुर्ग से कहता है कि चलिए दादा जी मेरा हाथ पकड़िए मैं आपको सड़क पार करवाता हूं । मोहन उस बुजुर्ग को रोड पार कराने के बाद जैसे ही लौटने लगा । उस बुजुर्ग ने कहा कि बेटा मेरा एक और काम है तुम कर दोगे तो मुझ पर बहुत बड़ा अहसान होगा । मुझे थोड़ा चक्कर आ रहा है । एक कृपा करो मेरे साथ टेक्सी में बैठकर मुझे मेरे घर तक छोड़ दो । फिर मैं उसी टेक्सी के माद्ध्यम से तुम्हें यहां तक छुड़ुवा दूंगा । मोहन एक मिनट कुछ सोचने के बाद बुजुर्ग के साथ जाने को तैयार हो जाता है । मोहन एक टेक्सी रुकवाता है फिर बुजुर्ग और मोहन टेक्सी में बैठ कर उस बुजुर्ग के घर की ओर चल पड़ते हैं । टेक्सी के बुजुर्ग की सोसायटी पहुंचने के बाद मोहन उन्हें सहारा देकर टेक्सी से उतारकर उन्हें सहारा देकर उनके फ़्लेट तक पहुंचाने का उपक्रम करता है । वे दोनों सातवें माले स्थित उस बुजुर्ग के फ़्लेट पहुंचते हैं । बुजुर्ग अपने फ़्लेट का दरवाज़ा खोलकर मोहन को बैठने कहते हैं । इतने में ही न जाने उन्हें क्या होता है कि वे ज़मीन में गिरने लगते हैं,तो मोहन उसे सहारा देकर वहीं स्थित सोफ़े पर लिटा देता है । इतने में बुजुर्ग को झटके आने लगते है और उनका शरीर ऐंठने लगता है  । यह देख मोहन डर जाता है । उसे लगता है कि एक अन्जान शहर में अन्जान सोसायटी में एक अन्जान बुजुर्ग के घर में बैठा हूं। और वह बुजुर्ग बेहोश है । ऐसे में मैं क्या करूं? 

( क्रमशः)
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मेरा शहर ( कहानी प्रथम क़िश्त)
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तीन दोस्त जिनकी उम्र लगभग 13'-14 वर्ष की थी। परीक्षा के पास वे तीनों एक दिन ट्रेन में बैठकर डोंगरगढ माता के दर्शन के लिये जाते हैं । ट्रेन मेँ तीनों रायपुर के बाद सो जाते हैं और उनकी नींद खुलती है ट्रेन के नागपुर पहुंचने के बाद। वे तीनों घबरा कर सोचने लगते हैं कि आखिर अब हम क्या करें?
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