मित्रता, गांव में आज भी जिंदा है......
बिहार के एक छोटे से गांव रामपुर था
इस मिट्टी ने दो सखी को जन्म दिया । सरस्वती और अंजलि एक दुसरे की जान थी। गांव के हर मुहल्ले और चौंक पर कोई नाम था तो इन दोनों सखी की। हौसलों और उम्र की नई परवान चढ़ रही थी । गांव की सुंदरता में इन दो सखी की एक छोटा सा हिस्सा देख सकतें हैं। और इस कहानी को दोस्ती के साथ अलग अलग सामाजिक पहलू को भी दिखाने, की कोशिश रहेगी। क्यों कि समाज का आईना हमारे साहित्यिक दर्पण ही है।
तो फिर चलिए और कहानी के इस दोनों सखी के मनमोहन, धूप की तरह आंखों को सुकून देने वाली अनुठा प्रसंग को पढ़िए।,
सरस्वती चंचल और हंसमुख चेहरा हमेशा रखने वाली लड़की थी ।कमर तक रेशमी काले बाल जो खुले रहने से और भी उसकी ख्याति को बढ़ा रही थी। चमकती मृगनयनी जैसी आंखें जो कोई देखें तो देखते रह जाए।
मां बाप की लाडली बेटी थी और अभी यह बारहवीं की पढ़ाई कर रही है।
अंजलि... अपने चेहरे पर खामोशी और शांति की चादर ओढ़ रहती है पर समझदारी कच्ची उम्र में आ गई। पर हां अंजलि बेहद खूबसूरत है यह बात हमारी सरस्वती खुद अपने मुख से कह रही है। क्यों कि हमेशा चिढ़ा करती है ।
राज परिवार यादव परिवार था , राज यादव के दो बेटा मनोज जो कि अंजलि के पापा है और भोला बेटा जो कि सरस्वती के पापा है।
सरस्वती की मां गीता देवी, घरों के काम के साथ अपना खेत और दुसरो की खेतों में भी कामकर के भरन पोषण करती है। भोला यादव हमेशा अपने ही अड्डा पर लगे रहते थे । शादी से पहले और अब सरस्वती शादी करने वाली हो गई है उसके बाद भी दारू -तारी पीना नहीं छोड़ा है।
पहले तो बाहर पंजाब में काम करने जाया भी करता था।
अब तो दो साल से यही गांव में रहकर भर दिन अड्डा पर पड़ा रहता है। उसे कोई मतलब नहीं है कि घर परिवार कैसे चलेगा। आज सुबह खाना बना है तो शाम में क्या बनेगा।
उम्मीद किस से रखूं , तू है कौन मेरा
ब्याह कर लाय, क्यों कि भूख केवल जिस्म की तेरा
फिर भी सरस्वती का भाई राजवीर यादव बहुत कम उम्र में दिल्ली चला गया। सरस्वती से छोटा पर अपने परिवार का बहुत ही ध्यान रखता है। मां और बहन की जिम्मेदारी कच्ची उम्र में उसने उठा ली। बचपन कहां गया पता नहीं ,पर राजवीर से राज्य मिस्त्री की बातें बहुत अच्छा से पता है।
कि घर के लिए कैसे दिन रात एक करके काम करता और
दो साल से घर की जिम्मेदारी उठा रखा है। सरस्वती के बहुत कहने पर इस बार होली की छुट्टी लेकर घर आ रहा है। जब सरस्वती कही की चले आओ तो राजवीर बड़ी सयानी बात कहता है कि चला आऊंगा तो होली में क्या खाएंगी।
शब्द है इसके पीछे भूखे पेट और समाज की तोहीन न हो , उलाहना देने के लिए इस समाज में आदमी की कमी नहीं है। अगर खाते पीते हैं तो भी जलेगा और नहीं खाते हैं तो भी बातें बनाएगा।
राजवीर अपने बहन की बात काट नहीं सकता था और यह भाई बहन का रिश्ता आगे और भी देखने को मिलेगी कि कैसे ....
यह मेरी पहली कहानी है, उम्मीद करता हूं कि आप लोगों को पसंद आए...
इसलिए , पढ़ते रहिए... मेरे गांव की दो सखी.....
जारी है...
देव ऋषि ✨ प्रारब्ध ✨✍️✍️