भाग -2
अंजलि के पापा मनोज यादव अपने ही गांव के चौक पर मिठाई की दुकान खोल रखे थे ।बहुत ही विनम्र सीधा साधा आदमी हैं पुजा पाठ करने वाले व्यक्ति हैं। हनुमान जी के परमभक्त कह सकते हैं,।
इनके दुकान में लड्डू और रसमलाई बहुत प्रसिद्ध था। बहुत दूर दूर से इनके यहां मिठाई लेने और खाने भी आते हैं।
अंजलि की मां मेघा देवी घरों के ही काम करती है और अपने खेतों तक ही सीमित रहती है। मेघा जी थोडा लालची स्वभाव के है , अपनी दुकान होने के कारण सरस्वती की मां गीता जी से खुद को अच्छा और अमीर समझती है। पर इससे अंजलि और सरस्वती की दोस्ती पर असर अभी तक नहीं पड़ा है
आगे देखते हैं कि कहानी में क्या क्या होता है।
अंजलि का भाई अभी बहुत छोटा है शिवम तथा बहन आरती है। जो कि अंजलि से छोटी और शिवम से बड़ी है।
अंजलि और सरस्वती एक साथ ही बारहवीं में पढ़ती है और एक ही कोलेज में भी है। दोनों आर्ट्स की छात्रा है ।
गांव घर में बस पढ ले यही काफी है और कोचिंग न होने और कोलेज दूर होने के कारण भी बस नाम का बारहवीं पास करवाते हैं ताकि लोग अपनी बेटी की शादी अच्छे घरों में कर सकते। भले दहेज़ जितना भी मांगे परंतु शादी हो जाएं। यही है आज का समाज जो हर बात पर लड़की है, और गाय की तरह रहने की हिदायतें देते रहते हैं। जब एक औरत ही अपने बेटी की गुलामी में रखना चाहती हैं तो
फिर इस समाज के ठेकेदारों से कैसे लड सकते हैं। खैर, बदलना होगा और हद तक बदल रहा है, शहर में बहुत बदला है और हर चीज की तरह इस आजाद के बाद साकारात्मक के साथ साथ नाकारात्मक पहलू भी देखने को मिला है , ..जी हां आज भी ऐसी मानसिकता वाले लोग हैं शायद आगे भी रहेगी परंतु कुछ क्षेत्रों में सोच बदल रही है। और बेटा और बेटी एक समान तथा सम्मान भी मिल रही है।
होली के चार दिन बचें थे। और राजवीर अभी तक नहीं आया। इसलिए सरस्वती उदास अपने छत पर शाम के समय आसमान को निहार रही थी। और मन ही मन अपने परिवार की स्थिति अच्छी हो यही डुबते सूर्य से प्रार्थना कर रही थी। राजवीर दो साल से एक बार भी घर नहीं आया था और हर बार कोई न कोई बहाना लगा देता और रूक जाता था।
गीता जी कहते कहते थक चुकी थी राजवीर मां से यही कहकर निकला था कि तेरे आंखों में अपने बाप के कारण आंखों में आसूं नहीं देख सकता हूं और यह बेटा हमेशा तेरे साथ रहेगा। मां बेचारी अपने घर के कामकाज करती और अपने गमों को भूलने के लिए खेत चला जाया करती थी।
ताकि दो वक्त कु रोटी अपने बच्चों को खिला सकें।कभी नहीं नाराज़ और न ही कोई ख्वाहिशें जन्म ली। क्यों कि पुरा करने वाले अगर छोटा भाई हो, तो सब दब जाते हैं।
क्यों कि बाप के सामने क्या ही नजरिए से लेकर जाएगी। कही, हवस शिकारी उसे भी नोच खा सकते हैं।
सरस्वती चंचल और हंसमुख चेहरा रखती थी परंतु मां की दुःख देखकर हमेशा मां को अपनी बात और बदमाशी से हंसया करती थी।
शाम हो चुका था तो सरस्वती खाना बनने लगी। हर दिन अंजलि दिन में दो-तीन बार सरस्वती के घर आ जाया करती थी।पर आज एक बार भी नहीं आई। यही मन में सोच रही थी। कि अंजलि ने पीछे से आकर सरस्वती की आंखों पर हाथ रख देती है। तब सरस्वती ने बोली अभी तुझे याद आई मेरी। और बता तू सुबह से कहां मर गई थी। नज़र ही नहीं आई।
तब अंजलि बोली थोड़ा सर दर्द कर रह था इसलिए मैं सो रही थी । क्या बात है, तुझे मेरी चिंता भी होती है। क्या बात है बहन..
सुने हैं, बहन एक दुसरे से जलती रहती है, पर हमलोग के मामले में ऐसा कुछ नहीं है।
सरस्वती की मां गीता जी कमरे से निकल कर आंगन में आ गई और बाजार से लाए सब्जी काटने लगी । और सरस्वती और अंजलि का हंसी मज़ाक में इनका भी दिन बन जाता था। सच ही तो है, गम भर दिन और हंसी एक मिनट हो तो सारी थकान दूर हो जाती है। मनुष्य को हंसने से दुनिया भर के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। खैर..
जहां जाएगी घर इन दोनों की आवाज से गूंज उठेगी। और कोई कभी उदास रह नहीं पाएगा। गीता जी मन ही मन कहे जा रही थी।
जारी है....
देव ऋषि ✨ प्रारब्ध ✨✍️✍️