अरे मित्रों आप सब जानते हैं यह धरती सबको अपने अंदर समाहित कर लेती है मगर प्लास्टिक ही एक ऐसी मिट्टी की सौतन बनी है जिसको वह अपने अंदर समाहित नहीं कर पाती दिन पर दिन हुआ उसे प्रदूषित करती जा रही है जल से लेकर हवा तक कोई उसे सुरक्षित नहीं है विभिन्न प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं ऐसे में जागरूकता की सख्त जरूरत है इसी को ध्यान में रखकर या कविता लिखी जा रही है जो उसके विकास और विनाश दोनों की रूपरेखा कविता के द्वारा प्रदर्शित करेगी
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