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मृग कस्तूरी

28 जनवरी 2015

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दर्द भरा हो जिस दिल में, उस दिल को क्या तड़पाओगी; गुमनाम मोहब्बत के दामन में, तुम दाग कहाँ से लाओगी; तेरा था, तेरा हूँ , और तेरा ही रह जाऊँगा; तुम लाख वफ़ा कर लो फिर भी, मेरा क्यूँ कहलाओगी ; जीवन से जाके दूर भी मैं, न तुझसे जुदा हो पाऊंगा; तुम दिल से मुझे बुलाना तो, हर सांस में मुझको पाओगी; मैं लाख जतन कर लूँ फिर भी, तुझ तक पहुँच न पाऊंगा; कस्तूरी बन इस मृग कि भी, तुम दूर बहुत हो जाओगी; - विवेक सिंह

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