दर्द भरा हो जिस दिल में, उस दिल को क्या तड़पाओगी;
गुमनाम मोहब्बत के दामन में, तुम दाग कहाँ से लाओगी;
तेरा था, तेरा हूँ , और तेरा ही रह जाऊँगा;
तुम लाख वफ़ा कर लो फिर भी, मेरा क्यूँ कहलाओगी ;
जीवन से जाके दूर भी मैं, न तुझसे जुदा हो पाऊंगा;
तुम दिल से मुझे बुलाना तो, हर सांस में मुझको पाओगी;
मैं लाख जतन कर लूँ फिर भी, तुझ तक पहुँच न पाऊंगा;
कस्तूरी बन इस मृग कि भी, तुम दूर बहुत हो जाओगी;
- विवेक सिंह