ये क्या बोल रहे हो, बेटा?तुम अमेरिका चले जाओगे तो हम इस उम्र में कैसे जी पायेंगे?यहाँ अपने देश में क्या कमी है, मुझे और तेरी मां दोनों को खूब पेंशन मिलती है, तुम भी कमा ही रहे हो, एक बंगला और एक फ्लैट हमारे पास है, बेटा वो सब हम तुम्हारे नाम कर देते हैं, वैसे भी सब कुछ तुम्हारा ही तो है, इस 83वर्ष की उम्र में हम तुझसे दूर नही रहना चाहते।बेटा हमसे दूर मत जाना।
83वर्ष का जगदीश यह सब गुहार अपने एकलौते बेटे से कर रहा था।बेटा अमेरिका में जॉब मिल जाने के कारण वहाँ जाना चाहता था और जगदीश भविष्य में अपने और अपनी पत्नी के एकाकी जीवन के लिये चिन्तित था।ऐसा नही था कि बेटा बेरोजगार था, वो बैंक में जॉब कर रहा था, खुद जगदीश तथा उसकी पत्नी केंद्रीय जॉब से निवृत हुए थे,दोनो को ही अच्छी खासी पेंशन मिलती थी।पत्नी बिमार रहने लगी थी,और सपोर्ट से ही थोड़ा बहुत चल पाती थी।
बेटे के अमेरिका जाने के ऐलान के बाद जगदीश की पत्नी तो मानो पत्थर की हो गयी, उसने बेटे को रुक जाने के बारे मे एक शब्द भी नही बोला।वो जगदीश की पत्नी थी, जगदीश उसके चेहरे से ही उसके सदमे को महसूस कर बेटे से रुकने का आग्रह कर रहा था।पर बेटे पर विदेश जाने का ग्लैमर हावी था, वो अपने पिता को समझाने का प्रयास कर रहा था कि उसकी अनुपस्थिति में भी उन्हें कोई तकलीफ नही होगी, घर की सफाई आदि को मेड आयेगी ही,खाना न बनाना पड़े इसलिये वो टिफीन व्यवस्था करके जायेगा, बिमारी की हालत में वो उसके मित्र को बस फोन कर देंगे तो इलाज आदि की व्यवस्था वो कर देगा।
अवाक जगदीश अपने बेटे का मुहँ देखता रह गया।कितना स्याना हो गया है हमारा मुन्ना, विदेश जा रहा है, पर हमारा सब इंतजाम करके।उसे कैसे समझाया जाता कि टिफिन के खाने में और बेटे बहु द्वारा परोसे खाने मे अपनेपन के अहसास की कमी होती है।खुद की जिम्मेदारी को दोस्त पर डाल कर हमें निश्चिंत कर रहा था,हमारा स्याना बेटा।
अपने आत्मसम्मान को ताक पर रख जगदीश ने एक बार फिर कहा कि मुन्ना विदेश जाने का चांस तो हमे भी मिला था पर तेरी बोर्ड की परीक्षा के कारण हम तो गये नही।मुन्ना अब तक अपनी सहनशक्ति खो चुका था, बोला पापा आपने बेवकूफ़ी की तो क्या आप चाहते हैं कि मैं भी बेवकूफ़ी करूँ?मुन्ना का यह रूप देख और उसका उत्तर सुनकर जगदीश सन्न रह गया।उसने कातर नजरो से अपनी अपंग पत्नि की तरफ देखा तो वो तो बस यूं ही पत्थर बनी छत की ओर देख रही थी, पर आँखों के कोर में आंसू की बूंदे वो जगदीश से कैसे छुपाती।
जगदीश एकदम खामोश हो गया,जिस आत्मसम्मान को वो जीवनभर ढोता आया था, उस बोझ को उसी के बेटे ने एक झटके में उतार दिया था।कुछ भी ना बोलकर जगदीश ने अपने बेटे को अमेरिका जाने में पूरी सहायता की।
आखिर वो चला ही गया,बूढ़े माता पिता को अकेले जीने के लिये या फिर मरने के लिये छोड़कर।किसी प्रकार जीवन की गाड़ी दोनो ने खींचनी प्रारम्भ की ही थी कि एक दिन सुबह सुबह जगदीश की पत्नी उठी ही नहीं, जगदीश आवाज देता रहा पर अनन्त यात्रा पर गया यात्री किसकी सुनता है?
जगदीश मुन्ना को उसकी माँ की मौत का समाचार नही देना चाहता था, पर उसके मित्रों ने सूचना भेज ही दी।मुन्ना का फोन आया, पापा माँ चली गयी और मैं उनके अंतिम दर्शन भी नही कर सका।आप अपने को संभालना, मैं अभी तो नहीं आ पाउँगा पर जैसे ही अवकाश मिलेगा तब मिलने आऊँगा।
कितने प्यार से मुन्ना अपने पापा को सांत्वना दे रहा था, अब वो कोई बच्चा थोड़े ही है, अमेरिका में सर्विस कर रहा है, बड़ा हो गया है ना।वो तो छुट्टियां नही मिल रही इसलिये नही आ पा रहा नही तो आता जरूर अपनी माँ का अन्तिम संस्कार भी करता,बहुत प्यार भरा पड़ा है उसके मन में।
जगदीश ने बेटे से कहा बेटा चिंता मत करो, बेकार फोन किया अरे मुन्ना वो मेरी पत्नी थी और मैं हूँ ना,सब कर लूंगा।
पत्नि को गये दो माह बीत गये थे,पूरा बंगला खाने को दौड़ता था।बेटे द्वारा उसके सम्मान को जो चकनाचूर किया था उसका दंश उसे और विचलित कर देता।इतनी उम्र होने पर भी भगवान भी अपने पास नही बुला रहा।उसका मन अब मुन्ना से भी बात करने को नही करता।
आत्मसम्मान को चोट और अकेलेपन ने जगदीश को तोड़कर रख दिया।एकदिन उसने कुछ निर्णय लिया और अपना बंगला तथा फ्लैट एक ट्रस्ट को दान कर दिया और खुद एक वृद्धाश्रम में रहने को चला गया।
यहाँ रहते जगदीश को दो वर्ष हो गये हैं।कभी कभी उसका फोन आता है या मैं उसे फोन वार्ता कर लेता हूँ, मनोभावो को पढ़ने को मैं हमेशा विडियो कॉल करता हूँ, जिससे जगदीश को देख तो सकूँ।85 वर्ष की उम्र में वो अपनी उम्र के सखाओं के बीच खुश है।एक बात और बताऊँ इन दो वर्षों में उसने कभी भी अपने बेटे का जिक्र अपनी बातों में नही किया।
एक दिन मैंने ही फोन पर मुन्ना के बारे में पूछ लिया तो जगदीश बोला अरे मुन्ना अपने पापा को बहुत प्यार करता है, अपनी माँ से भी करता था, बस मेरी मौत की खबर उसे मत देना नही तो उसे भारत न आ पाने का बहुत दुःख होगा?
जगदीश के दर्द को मै समझ रहा था, वृद्धाश्रम में जगदीश खुश था कह रहा था पेन्शन आती है, वृद्धाश्रम को दे देता हूं।पूरे आत्मसम्मान के साथ रहता हूँ, वो मेरा खूब ध्यान रखते हैं।फिर सहसा उसकी आंखों में आँसू आ जाते हैं और धीरे से कहता है मुन्ना ने हमे इतना प्यार क्यूँ दिया भला?
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक, सत्य घटना पर आधारित।