मानसी, क्यों तुम हमेशा मुझे इस प्रकार से जलील करती रहती हो, क्यों तुम्हें मुझसे एलर्जी सी हो गयी है?
ये सब तुम्हें लगता है, मेरी जरा सी बात भी तुम्हे चुभती है।असल में तुम मेरे स्टेटस से जलने लगे हो।
क्या बोल रही हो,तुम?मैं ,मैं तुमसे जलूंगा, तुमसे?मानसी क्या सोच बना कर रखी है तुमने?अब क्या बोलूं?
ये संवाद है रमेश और मानसी का, अभी दो वर्ष भी दोनो की शादी को नही हुए हैं, पर दोनों की किचकिच अक्सर रहने लगी है।असल में हुआ यूं कि मानसी ने शादी पूर्व प्रदेश स्तर की प्रशासनिक सेवा हेतु प्रतियोगी परीक्षा दी थी।शादी के समय तक परिणाम घोषित नही हुआ था।इसी बीच एक व्यापारी परिवार से 25 वर्षीय रमेश से मानसी के रिश्ते की बात चली।लड़का हैंडसम था,अमीर घराना था, लड़का भी व्यापार को संभाल रहा था।मानसी को तथा उसके परिवार को रिश्ते में कोई बुराई नजर नही आयी।रमेश को भी मानसी भा गयी।रिश्ता तय हो गया और शादी भी हो गयी।
सबकुछ ठीक ही चल रहा था,रमेशऔर मानसी हनीमून के लिये भी मॉरीशस गये।दोनो अपनी शादी से खूब प्रसन्न थे।शादी के छः माह बाद मानसी द्वारा प्रशासनिक परीक्षा का परिणाम आ गया और उसमें मानसी ने साक्षात्कार भी क्वालीफाई कर लिया।मानसी को उत्तरप्रदेश में बिक्रीकर अधिकारी के रूप में नियुक्ति हो गयी।अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के उपरांत मानसी को बिक्रीकर अधिकारी के रूप में अपने ही नगर में पोस्टिंग भी मिल गयी।रमेश सहित परिवार के सभी सदस्य बहुत खुश थे।रमेश के पिता ने तो इस खुशी में एक बड़ी पार्टी भी रखी,जिसमें नगर के गणमान्य व्यक्तियों के साथ मानसी के आफिस से उसके साथी अन्य अधिकारी और उनसे ऊपर के ऑफिसर्स ने भी शिरकत की।
स्वाभाविक रूप से मानसी को अपने साथी अधिकारियों से रमेश का अपने पति के रूप में परिचय कराना पड़ा।मानसी अपने को असहज महसूस कर रही थी, जबकि पार्टी उसी के सम्मानार्थ रखी गयी थी।
रमेश निरन्तर मानसी के व्यवहार में परिवर्तन महसूस कर रहा था,उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि मानसी क्यूँ बदलती जा रही है।रमेश के या परिवार के साथ वो कही भी जाने में झिझकती थी,जाना टाल जाती।रमेश के साथ तो बिल्कुल भी नहीं।अब तो वो रमेश से ठीक प्रकार बात भी नही करती।बात बात पर रमेश झिड़क तक देती।
असल मे बिक्रीकर अधिकारी हो जाने पर उसे व्यापारी पति के साथ कही जाना उसे हीनता का अहसास कराता था।मानसी सोचती, काश उसकी प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम शादी से पूर्व आ जाता।यही ग्रंथि उसे रमेश से दूर ले जा रही थी।
उस दिन तो मानसी ने साफ कह ही दिया कि मैं एक सेल्स टैक्स ऑफिसर हूँ और तुम एक व्यापारी, बताओ हमारा क्या मेल?
अब रमेश की समझ मे आया कि मानसी अपने पद के अहंकार में अपने पति का रोज रोज क्यूँ अपमान करती है।रमेश ने फिरभी मानसी को समझाने का प्रयास किया,अहंकार में अपनी गृहस्थी को तबाह करना उचित नहीं है।पर पद का नशा मानसी पर सर चढ़ा था।
रमेश ने भी मानसी से उसी के अनुसार दूरी बना, अपने को एक NGO के माध्यम से लावारिस बच्चो को प्रश्रय देने के प्रकल्प में अपने को झोंक दिया। पैसे की उस पर खुद भी कमी नही थी और इस नेक काम में समाज का भी भरपूर सहयोग मिलने लगा।रमेश की प्रसिद्धि दिनों दिन बढ़ने लगी।
एक दिन एक सामाजिक संगठन ने रमेश को सम्मानित करने का बड़े स्तर पर कार्यक्रम रखा उसमें मुख्यमंत्री जी को भी आमंत्रित किया गया था।मुख्यमंत्री जी के आने के कारण नगर में तैनात अधिकारियों की विभिन्न व्यवस्थाओं के लिये ड्यूटी लगाई गयी।इनमे मानसी की भी ड्यूटी लगी थी,अतिथियों के स्वागत हेतु।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण स्वाभाविक रुप से रमेश था, मुख्यमंत्री जी द्वारा उसे ही सम्मानित किया जाना था।हर कोई रमेश से परिचय को उत्सुक था,मानसी के विभाग के उच्चाधिकारी भी।वो मानसी को रमेश के सम्मानित होने पर बधाई दे रहे थे।
काफी दिनों बाद आज मानसी रमेश को भरपूर निगाहों से देख रही थी,आज उसका अहंकार टूट रहा था।पर अहंकार टूटने पर आज मानसी की कोई ईगो हर्ट नही हो रही थी, उसे अपने रमेश पर गर्व की अनुभुति हो रही थी।
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक