इतना मीठा तो दुनिया में निन्दा रस नहीं।
फिर भी इसे करने में कोई आलस नहीं।।
पीठ पीछे तो इसका रूतबा ओर बढता है।
चलने लगी जुबां फिर उसपे काबू वश नहीं।।
मौका मिलते ही इसका आनन्द चाव से लेते।
सबको मालूम पर निन्दा से मिलता यश नहीं।।
'जहरीला' लेने हो तो अच्छे रस लिया करे।
दुनिया में निन्दा रस से घटिया रस नहीं।।
सर्वाधिकार सुरक्षित -
डॉ. गोरधनसिंह सोढा 'जहरीला'
बाड़मेर राजस्थान