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निशान यात्रा कि आरंभ

22 अक्टूबर 2024

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निशान यात्रा 
निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं। इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है। मुख्यत: यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम मंदिर तक की जाती है, जो 18 किमी. की होती है।
हिंदू धर्म में ध्वज को विजय का प्रतीक माना गया है। खाटू श्याम जी को निशान (ध्वज) अर्पित करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है और आज भी बाबा श्याम को निशान चढ़ाया जाता है। निशान को झंडा और ध्वज कहा जाता है। निशान को बाबा श्याम द्वारा दिया गया बलिदान और दान का प्रतीक माना गया है।
सीकर: बाबा श्‍याम के नाम से पुकारे जाने वाले बाबा खाटूश्‍यामजी का जन्‍मदिन हर साल कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है. इस साल 2024 में बाबा श्याम का जन्मदिन 20 मार्च को है. राजस्‍थान के सीकर जिले में स्थित खाटू मंदिर समिति और दुनियाभर से खाटू कस्बे में पहुंच रहे श्‍याम भक्‍त बाबा श्‍याम के जन्‍मोत्‍सव की धूमधाम से तैयारी कर रहे हैं.

हारे का सहारा, भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार, लखदातार, शीश के दानी कहे जाने वाले बाबा खाटू श्यामजी के भक्त केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हैं. राजस्थान में स्थित बाबा के मंदिर में बाबा के दर्शन के लिए लंबी लंबी कतारें लगती हैं. आज हम जानेंगे बाबा श्याम के मंदिर में भक्त जो निशान चढ़ाते हैं उसका क्या मतलब है?

निशान चढ़ाने की परंपरा कब शुरू हुई थी

बहुत से भक्तजब मन्नत मांगने बाबा खाटूश्यामजी के मंदिर जाते हैं, तो वह भक्त बाबा के दरबार में माथा टेक मन्नत मांगते हैं और बाबा से प्राथना करते है कि है लखतादार, हारे का सहारा मेरी यह मन्नत पूरी होने पर मैं आपके दरबार पर निशान चढ़ाने वापस खाटू नागरी आऊंगा. कई ऐसे भक्त भी होते हैं जो मन्नत पूरी होने से पहले भी बाबा के दरबार पर निशान चढ़ा देते हैं. खाटू श्यामजी को निशान चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह निशान बेहद पवित्र माना जाता है.

जब औरंगजेब पहुंचा था खाटू धाम, प्राचीन शिव मंदिर को तोड़कर… लूटना चाहता था सोना-चांदी, जैसे ही रखा पहली सीढ़ी पर पैर तभी…

बाबा खाटूश्यामजी पर जो निशान चढ़ाया जाता है वह किसका प्रतीक है? 

खाटू श्याम पर जो निशान चढ़ाया जाता है, उसे झंडा कहते हैं. सनातन धर्म में ध्वज को विजय के प्रतीक के तौर पर माना जाता है. साथ ही बता दें, यह निशान श्याम बाबा द्वारा दिया गया बलिदान और दान का प्रतीक माना जाता है. क्योंकि भगवान कृष्ण के कहने पर धर्म की जीत के लिए उन्होंने अपना शीश समर्पित कर दिया था और युद्ध का श्रेय भगवान कृष्ण को दिया था. श्याम बाबा के ध्वज का रंग केसरिया, नारंगी और लाल रंग का होता है, निशान पर कृष्ण और श्याम बाबा के चित्र और मंत्र अंकित होते हैं.

खाटू श्याम बाबा पर निशान चढ़ाने से पहले किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?

कुछ निशानों पर नारियल और मोर पंख भी अंकित होता है. मान्यता है कि इस निशान को चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सब मंगल ही मंगल रहता है. खाटू श्याम पर ध्वज चढ़ाने से पहले उसकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है और खाटू श्याम की यात्रा के समय भक्त उस ध्वज को अपने हाथ में ही रखते हैं. वर्तमान समय में भक्त सोने चांदी के बने निशान भी चढ़ाते हैं. निशान यात्रा में नंगे पांव चलकर भगवान के मंदिर तक पहुंचकर निशाना चढ़ाना बहुत उत्तम माना जाता है.

निशान यात्रा कहा से शुरू होती है?

सबसे ज्यादा निशान फाल्गुन मास में लगने वाले लक्खी मेले में चढ़ाए जाते हैं. निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं. इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है. यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम मंदिर तक की जाती है, जो 18 किमी. की होती है.
बहुत से भक्तजब मन्नत मांगने बाबा खाटूश्यामजी के मंदिर जाते हैं, तो वह भक्त बाबा के दरबार में माथा टेक मन्नत मांगते हैं और बाबा से प्राथना करते है कि है लखतादार, हारे का सहारा मेरी यह मन्नत पूरी होने पर मैं आपके दरबार पर निशान चढ़ाने वापस खाटू नागरी आऊंगा. कई ऐसे भक्त भी होते हैं जो मन्नत पूरी होने से पहले भी बाबा के दरबार पर निशान चढ़ा देते हैं. खाटू श्यामजी को निशान चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह निशान बेहद पवित्र माना जाता है.
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रचनाएँ
बर्बरीक से खाटूश्यामजी बनने का सफर
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इस पुस्तक में श्री खाटूश्यामजी के जीवन एक प्रकाश डालने का काम किया है कुछ अधूरी रह चुकी बातों को पुरा करने कि कोशिश कि है खाटूश्यामजी के जीवनकाल कि घटनाएं और बर्बरीक से खाटूश्यामजी बनने का सफ़र और खाटूश्यामजी मन्दिर निर्माण के विशेष में बताता गया है खाटूश्यामजी के परम भक्त को समर्पित है और एक अपनी टूटीं फुटी क़लम से अपने लखदातार सेठ हारे का सहारा खाटूश्यामजी हमारा के श्री चरणों में समर्पित है जय श्री श्याम 🕉️ श्री श्याम देव नमः लेखक शायर विजय मलिक अटैला
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भूमिका

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जय श्री श्याम भक्तों आज आपको इस पुस्तक के अंदर हमारे खाटू श्याम जी के जीवनकाल सभी घटनाओं के बारे में विस्तार पर्वक जानकारी हासिल कराई जाएगी।खाटूश्यामजी के बाल्यकाल से जवानी तक और तपस्या त्याग और हारे

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विषय सूची

22 अक्टूबर 2024
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• भूमिका • लेखक के विचार • बर्बरीक जी का बाल्यकाल • महाभारत युद्ध • शीशा का दान• पड़ावों को युद्ध कि सच्चाई बताईं • कलयुग में पुजा का वरदान • मन्दिर निर्माण कार्य •

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लेखक के विचार

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सभी खाटू श्याम जी के भक्तों को मैं हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूं इस पुस्तक का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ खाटू श्यामजी के जीवन पर प्रकाश डालना है मेरी कलम इतनी शक्ति नहीं मैं तो एक टूटी फूटी कलम से मे

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बर्बरीक जी का बाल्यकाल

22 अक्टूबर 2024
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जीवन परिचय=बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती (नागकन्या माता) के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य भाई अंजनपर्व और मेघवर्ण का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है। बर्बरीक को उनकी म

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महाभारत युद्ध से खाटूश्यामजी नाम तक का सफर

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महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पह

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पांडवों को युद्ध कि सच्चाई बताईं

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युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्ण

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खाटूश्यामजी को वरदान

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उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतए

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निशान यात्रा कि आरंभ

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निशान यात्रा निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं। इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है। मुख्यत:

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खाटूश्यामजी मन्दिर निर्माण गाथा

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मन्दिर निर्माण बर्बरीक का शीशा मिला था खाटू गांव में संपादन करनाकलियुग शुरू होने के कई साल बाद , सिर वर्तमान राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में दफन पाया गया । कलियुग शुरू होने के काफी बा

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खाटूश्यामजी का पहला भक्त

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खाटूश्यामजी के पहले भक्त रेवाड़ी के रहने वाले श्याम बहादुर अग्रवाल श्री खाटूश्याम के प्रथम परम भक्त थे, जिन्होंने दूर-दूर तक बाबा की महिमा का प्रचार किया. कहा जाता है कि उस वक्त सीकर के राजा ने श

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श्री खाटू श्याम जी स्तुति

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श्याम जी स्तुति हाथ जोड़ विनती करूं सुनियो चित्त लगाए,दास आ गयो शरण मे रखियो इसकी लाज,धन्य ढूंढारो देश है खाटू नगर सुजान,अनुपम छवि श्री श्याम की दर्शन से कल्याण।श्याम श्याम तो मैं रटू श्याम है जी

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खाटूश्यामजी सरकार कि आरती

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खाटूश्यामजी सरकार कि आरती ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ॐ जय श्री श्याम हरे॥रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥ॐ ज

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