निशान यात्रा
निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं। इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है। मुख्यत: यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम मंदिर तक की जाती है, जो 18 किमी. की होती है।
हिंदू धर्म में ध्वज को विजय का प्रतीक माना गया है। खाटू श्याम जी को निशान (ध्वज) अर्पित करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है और आज भी बाबा श्याम को निशान चढ़ाया जाता है। निशान को झंडा और ध्वज कहा जाता है। निशान को बाबा श्याम द्वारा दिया गया बलिदान और दान का प्रतीक माना गया है।
सीकर: बाबा श्याम के नाम से पुकारे जाने वाले बाबा खाटूश्यामजी का जन्मदिन हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है. इस साल 2024 में बाबा श्याम का जन्मदिन 20 मार्च को है. राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू मंदिर समिति और दुनियाभर से खाटू कस्बे में पहुंच रहे श्याम भक्त बाबा श्याम के जन्मोत्सव की धूमधाम से तैयारी कर रहे हैं.
हारे का सहारा, भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार, लखदातार, शीश के दानी कहे जाने वाले बाबा खाटू श्यामजी के भक्त केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हैं. राजस्थान में स्थित बाबा के मंदिर में बाबा के दर्शन के लिए लंबी लंबी कतारें लगती हैं. आज हम जानेंगे बाबा श्याम के मंदिर में भक्त जो निशान चढ़ाते हैं उसका क्या मतलब है?
निशान चढ़ाने की परंपरा कब शुरू हुई थी
बहुत से भक्तजब मन्नत मांगने बाबा खाटूश्यामजी के मंदिर जाते हैं, तो वह भक्त बाबा के दरबार में माथा टेक मन्नत मांगते हैं और बाबा से प्राथना करते है कि है लखतादार, हारे का सहारा मेरी यह मन्नत पूरी होने पर मैं आपके दरबार पर निशान चढ़ाने वापस खाटू नागरी आऊंगा. कई ऐसे भक्त भी होते हैं जो मन्नत पूरी होने से पहले भी बाबा के दरबार पर निशान चढ़ा देते हैं. खाटू श्यामजी को निशान चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह निशान बेहद पवित्र माना जाता है.
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बाबा खाटूश्यामजी पर जो निशान चढ़ाया जाता है वह किसका प्रतीक है?
खाटू श्याम पर जो निशान चढ़ाया जाता है, उसे झंडा कहते हैं. सनातन धर्म में ध्वज को विजय के प्रतीक के तौर पर माना जाता है. साथ ही बता दें, यह निशान श्याम बाबा द्वारा दिया गया बलिदान और दान का प्रतीक माना जाता है. क्योंकि भगवान कृष्ण के कहने पर धर्म की जीत के लिए उन्होंने अपना शीश समर्पित कर दिया था और युद्ध का श्रेय भगवान कृष्ण को दिया था. श्याम बाबा के ध्वज का रंग केसरिया, नारंगी और लाल रंग का होता है, निशान पर कृष्ण और श्याम बाबा के चित्र और मंत्र अंकित होते हैं.
खाटू श्याम बाबा पर निशान चढ़ाने से पहले किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
कुछ निशानों पर नारियल और मोर पंख भी अंकित होता है. मान्यता है कि इस निशान को चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सब मंगल ही मंगल रहता है. खाटू श्याम पर ध्वज चढ़ाने से पहले उसकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है और खाटू श्याम की यात्रा के समय भक्त उस ध्वज को अपने हाथ में ही रखते हैं. वर्तमान समय में भक्त सोने चांदी के बने निशान भी चढ़ाते हैं. निशान यात्रा में नंगे पांव चलकर भगवान के मंदिर तक पहुंचकर निशाना चढ़ाना बहुत उत्तम माना जाता है.
निशान यात्रा कहा से शुरू होती है?
सबसे ज्यादा निशान फाल्गुन मास में लगने वाले लक्खी मेले में चढ़ाए जाते हैं. निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं. इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है. यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम मंदिर तक की जाती है, जो 18 किमी. की होती है.
बहुत से भक्तजब मन्नत मांगने बाबा खाटूश्यामजी के मंदिर जाते हैं, तो वह भक्त बाबा के दरबार में माथा टेक मन्नत मांगते हैं और बाबा से प्राथना करते है कि है लखतादार, हारे का सहारा मेरी यह मन्नत पूरी होने पर मैं आपके दरबार पर निशान चढ़ाने वापस खाटू नागरी आऊंगा. कई ऐसे भक्त भी होते हैं जो मन्नत पूरी होने से पहले भी बाबा के दरबार पर निशान चढ़ा देते हैं. खाटू श्यामजी को निशान चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और यह निशान बेहद पवित्र माना जाता है.