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महाभारत युद्ध से खाटूश्यामजी नाम तक का सफर

22 अक्टूबर 2024

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महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने लीले घोड़े, जिसका रंग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।

सर्वव्यापी श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी भी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकस में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी कि इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेदकर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया।

तीर ने क्षण भर में पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वरना ये आपके पैर को चोट पहुँचा देगा। श्रीकृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराया कि वह युद्ध में उस ओर से भाग लेगा जिस ओर की सेना निर्बल हो और हार की ओर अग्रसर हो। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।

ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। श्रीकृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिए चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की दृढ़ता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।

उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतएव उनका शीश दान में मांगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। रातभर बर्बरीक ने अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा अर्चना की और फाल्गुन माह की द्वादशी को स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा अर्चना करने के पश्चात् उन्होंने अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
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रचनाएँ
बर्बरीक से खाटूश्यामजी बनने का सफर
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इस पुस्तक में श्री खाटूश्यामजी के जीवन एक प्रकाश डालने का काम किया है कुछ अधूरी रह चुकी बातों को पुरा करने कि कोशिश कि है खाटूश्यामजी के जीवनकाल कि घटनाएं और बर्बरीक से खाटूश्यामजी बनने का सफ़र और खाटूश्यामजी मन्दिर निर्माण के विशेष में बताता गया है खाटूश्यामजी के परम भक्त को समर्पित है और एक अपनी टूटीं फुटी क़लम से अपने लखदातार सेठ हारे का सहारा खाटूश्यामजी हमारा के श्री चरणों में समर्पित है जय श्री श्याम 🕉️ श्री श्याम देव नमः लेखक शायर विजय मलिक अटैला
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भूमिका

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जय श्री श्याम भक्तों आज आपको इस पुस्तक के अंदर हमारे खाटू श्याम जी के जीवनकाल सभी घटनाओं के बारे में विस्तार पर्वक जानकारी हासिल कराई जाएगी।खाटूश्यामजी के बाल्यकाल से जवानी तक और तपस्या त्याग और हारे

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विषय सूची

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• भूमिका • लेखक के विचार • बर्बरीक जी का बाल्यकाल • महाभारत युद्ध • शीशा का दान• पड़ावों को युद्ध कि सच्चाई बताईं • कलयुग में पुजा का वरदान • मन्दिर निर्माण कार्य •

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लेखक के विचार

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सभी खाटू श्याम जी के भक्तों को मैं हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूं इस पुस्तक का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ खाटू श्यामजी के जीवन पर प्रकाश डालना है मेरी कलम इतनी शक्ति नहीं मैं तो एक टूटी फूटी कलम से मे

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बर्बरीक जी का बाल्यकाल

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जीवन परिचय=बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती (नागकन्या माता) के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य भाई अंजनपर्व और मेघवर्ण का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है। बर्बरीक को उनकी म

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महाभारत युद्ध से खाटूश्यामजी नाम तक का सफर

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महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पह

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महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, अतः यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करने पह

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महाभारत युद्ध से खाटूश्यामजी नाम तक का सफर

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पांडवों को युद्ध कि सच्चाई बताईं

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युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्ण

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खाटूश्यामजी को वरदान

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उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतए

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निशान यात्रा कि आरंभ

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निशान यात्रा निशान यात्रा एक तरह से पदयात्रा होती है, जिसमें भक्त अपने हाथों में श्रीश्याम ध्वज को पकड़कर खाटू श्याम मंदिर तक आते हैं। इस यात्रा को श्रीश्याम ध्वज का निशान भी कहा जाता है। मुख्यत:

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खाटूश्यामजी मन्दिर निर्माण गाथा

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मन्दिर निर्माण बर्बरीक का शीशा मिला था खाटू गांव में संपादन करनाकलियुग शुरू होने के कई साल बाद , सिर वर्तमान राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में दफन पाया गया । कलियुग शुरू होने के काफी बा

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खाटूश्यामजी का पहला भक्त

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खाटूश्यामजी के पहले भक्त रेवाड़ी के रहने वाले श्याम बहादुर अग्रवाल श्री खाटूश्याम के प्रथम परम भक्त थे, जिन्होंने दूर-दूर तक बाबा की महिमा का प्रचार किया. कहा जाता है कि उस वक्त सीकर के राजा ने श

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श्री खाटू श्याम जी स्तुति

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श्याम जी स्तुति हाथ जोड़ विनती करूं सुनियो चित्त लगाए,दास आ गयो शरण मे रखियो इसकी लाज,धन्य ढूंढारो देश है खाटू नगर सुजान,अनुपम छवि श्री श्याम की दर्शन से कल्याण।श्याम श्याम तो मैं रटू श्याम है जी

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खाटूश्यामजी सरकार कि आरती

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खाटूश्यामजी सरकार कि आरती ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ॐ जय श्री श्याम हरे॥रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥ॐ ज

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