उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिए के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतएव उनका शीश दान में मांगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। रातभर बर्बरीक ने अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा अर्चना की और फाल्गुन माह की द्वादशी को स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा अर्चना करने के पश्चात् उन्होंने अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
इस पुस्तक में श्री खाटूश्यामजी के जीवन एक प्रकाश डालने का काम किया है कुछ अधूरी रह चुकी बातों को पुरा करने कि कोशिश कि है खाटूश्यामजी के जीवनकाल कि घटनाएं और बर्बरीक से खाटूश्यामजी बनने का सफ़र और खाटूश्यामजी मन्दिर निर्माण के विशेष में बताता गया है खाटूश्यामजी के परम भक्त को समर्पित है और एक अपनी टूटीं फुटी क़लम से अपने लखदातार सेठ हारे का सहारा खाटूश्यामजी हमारा के श्री चरणों में समर्पित है जय श्री श्याम 🕉️ श्री श्याम देव नमः
लेखक शायर विजय मलिक अटैला