निवेदन
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हिंदी भाषी होने के कारण हिंदी से लगाव स्वाभाविक है। अपने महाविद्यालय जीवन के समय साहित्य को पढ़ने, समझने का अवसर मिला। पहली बार जब रश्मिरथी और कामायनी से सामना हुआ तो मेरे मन मस्तिष्क पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, धीरे-धीरे मन साहित्य में रमता चला गया। फिर धीरे-धीरे लिखने के सफर की शुरुआत हुई। टूटे-फूटे शब्दों में कुछ मुक्तक, कुछ कविताएं लिखीं। उसके बाद धीरे-धीरे शेरो शायरी को पढ़ा, सुना और थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश की। पिछले कुछ समय से जहां से जैसे जो आमद हो रही है, उसको कलमबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूं।