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बाबूजी

16 नवम्बर 2021

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बाबूजी थे सब अच्छा था।

भोला सा बचपन सच्चा था।

खुशियों का संसार सजा था रौनक थी दालानों में,

सपनों के भी पंख लगे थे सच्चाई थी अरमानों में,

घर भी भरा भरा लगता था खुशहाली का मौसम था

होती थी सब ख्वाहिश पूरी सब चाहत एक इशारे पर

रिश्ते पक्के थे माना कि मिट्टी का घर था कच्चा था

बाबूजी थे सब अच्छा था ।

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यह कुछ कविताओं और गजलों का संकलन है। जो अपने और अपने परिवेश की उपज है। उसे कलमबद्ध करने की कोशिश की गई है।

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