देखते ही देखते पूरा एक साल बीत गया और बालू ने कुछ पैसे जोड़ कर अशोक का दाखिला स्कूल में करवा दिया और किताबें और बैग आदि जरूरत के सभी समान भी खरीद लिये.......l
अशोक अब 6 वर्ष का हो चुका था.....l
अम्मा देख मेरी किताब कितनी अच्छी है ना.......देख इसमे कबूतर भी है......और देख खरगोश भी तो है......अम्मा देख मेरा नया नया बैग और खाने का डिब्बा भी है.......बेहद खुश होकर अशोक नैया को अपनी सारी वस्तुएं दिखाने लगता है....l
हा बेटा अब तू जल्दी से सो जा तुमका सबेरे स्कूल जाना है.....एसा कहते हुए नैया अशोक की पीठ थपथपा कर उसे सुलाने का प्रयास करती है..l
अम्मा हम कल स्कूल जाएंगे न.......और तू मेरे साथ चलेगी न....रुक मैं अपने बैग में कबूतर वालीं किताब रख कर आता हूं....और बैग लेकर आता हूं नही तो कोई मेरा बैग ले जायगा......अपनी मां के के पास से उठकर भागता हुआ अशोक अपना बैग लेकर वापस मां के पास आ गया...और फिर बैग को अपने सीने से लगाकर ही सो गया...l
और फिर देखते ही देखते कोयल की मधुर आवाज और पंछियों की चहचहाहट की गूंज एवं बरसात के मौसम की हल्की हल्की फुहार के साथ गीली मिट्टी की सोंधी खुशबु से ख़ुशनुमा माहौल बनाती हुई उस अलबेली भोर का आगाज हुआ जिसका नैया और अशोक दोनों ही बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे...l
नैया जल्दी से उठकर बालू के लिए टिफिन तैयार करने लगती हैं और फिर अशोक की भी नींद खुल जाती है....l
अम्मा.....अम्मा.....पुकारता हुआ अशोक सीधा नैया के पास जाकर पूछता है कि अम्मा हम कब चलेंगे मैंने बैग में किताब भी तो रख ली......अब कितनी देर बाद चलेंगे...l
अरे कहां जाओगे अम्मा के साथ तुम......अशोक को इतना खुश देख कर दिहाड़ी के लिए निकलता हुआ बालू उसे अपनी गोद में उठा कर उससे पूछता है ....l
हम स्कूल जाएंगे......अम्मा कहीं थी कि वो हमको छोड़ने के लिए हमारे साथ जाएगी......और बाबुजी हमने तो अपने बैग में वो कबूतर वालीं किताब..जो कल तुम लाए थे न....वो भी रख ली....और खाने का डिब्बा भी रख लिया.....पर बाबुजी उसमे हम क्या लेकर जाएंगे वो तो खाली है........रुको मैं अम्मा को बोलकर उसमे खाना भरवा लेता हूं......बालू की गोद से झटके के साथ उतर कर अशोक अपना टिफिन ले कर सीधा नैया के पास भाग गया.......और फिर बालू भी खुशी खुशी दिहाड़ी पर निकल गया........l
इधर नैया भी अशोक को नहला धुला कर स्कूल के लिए तैयार कर देती हैं और फिर उसका टिफिन तैयार कर बैग में भर देती हैं और उसे समझा देती हैं कि जब सब बच्चे खाना खाए तो तू भी खा लेना......l
फिर नैया अशोक को लेकर स्कूल के लिए निकल जाती है l
बेटा अब में जा रही हूं.....शाम को आऊंगी तुमका लेने तुम अच्छे से पढ़ाई करना.........और झगड़ा नाही करना... अशोक को स्कूल में छोड़कर नैया उसे समझा कर वापस लौट आती हैं.....l
घर लौट कर नैया अशोक के बारे में सोच सोच कर परेशान हो रही थी....कहीं उ रो तो नहीं रहा होगा.....पता नहीं उसने टिफिन खाया की नहीं.......l
ये चार घंटे का समय नैया से काटे नहीं कट रहा था इसलिये वो स्कूल खत्म होने के एक घंटे पहले ही अशोक को लेने पहुंच गई थी.......l
और फिर घंटी की आवाज से स्कूल के बाहर बैठी नैया का ध्यान भंग होता है और बड़ी ही बेसब्री से वो गेट की ओर अपनी नजरे बिछाये अशोक के बाहर आने का इंतजार करने लगती हैं......l
इतने में अम्मा....अम्मा.... पुकारता हुआ अशोक नैया के पास आकर उससे लिपट जाता है l
अम्मा पता है आज टीचर हमको वन टू थ्री सिखाई और हमको कहानी भी सुनाई........और मैंने खुद ही अपना टिफिन खोलकर खाना भी खा लिया........हमको टीचर ने होमवर्क भी दिया है.......चलते चलते अशोक नैया को स्कूल के पहले दिन की हर बात बताता जाता है....l
ये दौर जो बचपन का होता है
लौटकर फिर ये आता नहीं
न कोई फिक्र न कोई बोझ
थकान से भी कोई नाता नहीं
अशोक भी स्कूल से आने के बाद मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल कूद में लग गया और फिर अपना होमवर्क पूरा करते करते ही उसे नींद आ गयी फिर नैया उसे जगा कर जैसे तैसे थोड़ा सा खाना खिलाकर उसे सुला देती है....l